चंद्रमा पर व्यवधान, एक अजिब घटना

चंद्रमा

चंद्रमा कि यह हाल के दिनों की बात है लेकिन नासा या अन्य देशों के खगोलविदों और वैज्ञानिकों को छोड़कर, दुनिया के अधिकांश नागरिक इस सच्चाई से पूरी तरह अनजान है।

4 मार्च 2022 को 07:25:58 AM EST और 12:25:58 UTC पर एक अज्ञात रॉकेट चंद्रमा की सतह से टकराया। इस मामले को कई खगोलविदों और वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर बैठे बैठे चंद्रमा की गति का अध्ययन करते हुए संज्ञान में लिया। वे सभी खगोलविद और वैज्ञानिक इस घटना से हैरान थे क्योंकि उस समय किसी भी देश ने चंद्रमा पर अपने चंद्रयान मिशन की घोषणा नहीं की थी!

चन्द्रमा कि अनसुल्जी पहेली

ये घटना पूरी दुनिया के लिए एक पहेली बन गई और आज भी अनसुलझी पहेली बनी है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि अज्ञात रॉकेट ने दो बड़े क्रेटर को एक साथ पास पास बना दिया था।आश्चर्यजनक बात ये भी थी के एक ही रॉकेट से दो बड़े क्रेटर पास में बनाना संभव नहीं है ! नासा ने चंद्रमा पर इस अज्ञात आक्रमण से चंद्रमा पर छोड़े गए दोनों क्रेटरों की तस्वीरें खींची और प्रकाशित कीं। चंद्रमा पर इस क्रेटर की तस्वीरें नासा के लूनर रिकोनिसेंस ऑर्बिटर (LRO) द्वारा 25 मई, 2022 को जारी की गई थीं। जो तसवीरे 24 जून 2022 को प्रकाशित की गई। नासा/अनुमान के अनुसार इतने बड़े क्रेटर तभी संभव हैं जब कोई रॉकेट/वस्तु चंद्रमा की सतह से 10000 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से टकराए।

चिन कि करामत ?

इस करतूत के लिए संदेह की सुई चीन की ओर इशारा करती है…मे 2014 मेँ चीन ने चांग के 5-T1 चंद्र रोवर को लॉन्च किया … हो सकता है कि चंद्रमा की परिक्रमा करने वाला उसका रॉकेट 10000 किमी प्रति घंटे की गति से चंद्रमा की सतह से टकराया हो … लेकिन संबंधित चीनी अधिकारियों ने इसका खंडन करते हुए कहा कि रोवर का रॉकेट 2015 में पृथ्वी के वायुमंडल में ही जल गया था।

चीन का दूसरा चंद्रयान 3 जनवरी 2019 को चांद के डार्क साइड पर उतरा। जिसका रॉकेट प्रायोगिक तौर पर चंद्रमा की सतह पर छीनने जान बुज़कर टकराया हो…सवाल यह भी है कि 2014 और 2019 के चीनी रॉकेट ने अब तक चांद की परिक्रमा किस शक्ति से की? सवाल यह भी है कि नासा के वैज्ञानिक और अमेरिकी उपग्रह चांद पर नजर जमाये बैठे हैं, फिर 2014 और 2019 से 2022 तक चीनी रॉकेटों को चांद की परिक्रमा करते हुए क्यों नहीं देखा?!*

मिशन चंद्र की श्रृंखला में अंतिम, 20 अगस्त 2019 को, भारत का चंद्रयान का “विक्रम लैंडर” चंद्रमा की सतह पर उतरा… तो चांद के पास आखिरी रॉकेट भारत का था।

फिर वही सवाल…  

भारत का रॉकेट

2019 का भारत का रॉकेट आज तक किस शक्ति से चंद्रमा की परिक्रमा कर रहा होगा ?सवाल यह भी है कि नासा के वैज्ञानिक और अमेरिकी उपग्रह चांद पर नजर रखे हुए हैं, तो उन्होंने 2019 से 2022 तक भारतीय रॉकेट को चंद्रमा की परिक्रमा करते क्यों नहीं देखा?!

चंद्रमा पर अज्ञात रॉकेट के हमले के कारण चंद्रमा की सतह पर मौजूद एक गड्ढा 18 मीटर यानी 59 फीट गहरा है, जबकि उसके बगल में मौजूद एक अन्य गड्ढा 16 मीटर यानी 52.5 मीटर गहरा है.

नासा के अनुसार, नासा और यूएसए के अन्य सक्रिय उपग्रहों ने अज्ञात रॉकेट के चंद्रमा की सतह से टकराने की घटना को लाइव नहीं देखा… साथ ही, 4 मार्च की घटना 25 मई को ध्यान मेँ आई और NASAने उसकी तसवीरे 24 जून को प्रसिद्ध की। और २४ जून को नासा ने दुनिया को इस घटना की जानकारी दी…

जो बात भी संदेह पैदा करनेवाली है !ऐसा भी हो सकता है कि खुद नासा ने यह कुकृत्य किया हो और इस घटना के लिए दूसरे देशों को दोष देना चाहता हो! ऐसा भी हो सकता है कि खुद नासा ने यह कुकृत्य किया हो और इस घटना के लिए दूसरे देशों को दोष देना चाहता हो!

चाहे जिस भी देश ने उस रहस्यमयी विस्फोट से चांद पर दो विशाल क्रेटर बना दिए, उसका रहस्य आज तक रहस्य बना हुआ है।  

सिक्के के दूसरे पहलू को देखने पर यह बात सामने आई कि 1950 के दशक से ही नासा, बमों से चंद्रमा पर बमबारी करने के फ़िराक मेँ थी।

शीत युद्ध के दौरान 1958 में मून एक्सपेडिशन तब भी अपने शरुआती दौर मेँ थे….तब यूएसएसआर को हराने और दुनिया को चौंकाने के हिस्से के रूप में, अमेरिका और नासा ने अपने गुप्त मिशन “Project A 119” (“प्रोजेक्ट ए 119”) के तहत चंद्रमा पर एक परमाणु बम विस्फोट करने का फैसला किया था।

चंद्रमा पर एक परमाणु बम विस्फोट

इस मामले की सारी तैयारियां मेक्सिको के कीर्टलैंड एयर फ़ोर्स बेस पर शुरू कर दी गई…चंद्रमा को इस तरह से विस्फोट करने का निर्णय लिया गया कि पृथ्वी का प्रत्येक निवासी अपनी आंखों से चंद्रमा पर हो रहे विस्फोट देख सके!

नासा ने बम में अधिक सोडियम का प्रयोग करने का निर्णय लिया था ताकि विस्फोट के समय बहुत अधिक चमक हो और वह चमक लंबे समय तक बनी रहे !चंद्रमा की सतह पर यह धमाका ठीक उसी क्षितिज पर किया जाना था, जहां चंद्रमा का चमकीला हिस्सा और चंद्रमा का अंधेरा हिस्सा मिलते हैं। इस परियोजना को दो अलग-अलग नाम दिए गए थे “प्रोजेक्ट ए 119” और “ए स्टडी ऑफ लूनर रिसर्च फ्लाइट्स”।

नासा की इस गुप्त योजना का खुलासा खगोलशास्त्री कार्ल सगान ने 1999 में अपनी आत्मकथा में किया था।

इस योजना के तहत जिस परमाणु बम का इस्तेमाल किया जाना था उसी क्षमता से हिरोशिमा में इस्तेमाल किए गए परमाणु बम के बराबर थी।

अमेरिका की योजना 1959 में चंद्रमा पर अपना सैन्य अड्डा स्थापित करने की थी… गुप्त योजना को “क्षितिज” नाम दिया गया था। जिसका उद्देश्य 1966 तक 10-12 व्यक्तियों को स्थायी रूप से चन्द्रमा पर बसाना था।

कहा जाता है कि सोवियत संघ भी कुछ इसी तरह की परियोजना पर काम कर रहा था जिसे ई4 कहा जाता है…लेकिन सोवियत संघ ने इस गुप्त परियोजना को बहुत पहले ही छोड़ दिया।

उस समय नासा के “प्रोजेक्ट ए 119” से जुड़े कुछ विशेषज्ञों ने अमेरिका को चेतावनी दी थी कि इस परियोजना से अच्छे परिणाम मिलने से ज्यादा नुकसान नासा और अमेरिका को होगा। उस सलाह के बाद “प्रोजेक्ट ए 19” की परियोजना को छोड़ दिया गया और उसे रोक दिया गया। उन लोगोने सलाह दी की बजाय परमाणु बम के इस्तेमाल से चंद्र पर समानव यान भेजने के लिए सोचना चाहिए।

वर्ष 2000 में प्रोजेक्ट ए 119 में शामिल नासा के एक पूर्व अधिकारी लियोनार्ड राफेल ने इन सभी मामलों का खुलासा किया, जो प्रोजेक्ट ए 119 के मुख्य अधिकारी बने रहे। लेकिन नासा और अमेरिका ने इन सब बातों का खंडन किया।

पर हकीकत ये है के मार्च 2022 में चंद्रमा पर विस्फोटों से छोड़े गए विशाल गड्ढों का रहस्य आज भी अनसुलझा है।

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