Acharya Drona का प्रतिशोध और उदारता 2 विरोधाभास Insult and Injury

Acharya Drona का प्रतिशोध और उदारता 2 विरोधाभास Insult and Injury

यहाँ भाग इस कहानी का भाग 1 पढें : द्रोण और द्रुपदकी मैत्री और दुश्मनीकी 1अनोखी कहानी

Acharya Drona का प्रतिशोध – इस तरह हतोत्साह, अपमानित होकर द्रोण हस्तिनापुर चले गए । वहां पर उनका साला कृपाचार्य रहता था । उनके घर हस्तिनापुर के राजकुमार गिल्ली डंडा खेल रहे थे  । खेलते खेलते एक गिल्ली अंधेरे कुएं में जा पड़ी । युधिष्ठिर गिल्ली निकालने चले गए तो उनकी हाथ से एक अंगूठी कुएं में गिर पड़ी । सब राजकुमारों ने  मुंह बनाए और युधिष्ठिर के हाथ की अंगूठी हाथ में नहीं है, तो माता को जवाब क्या देंगे ?

1. Acharya Drona हस्तिनापुर आये

इतने में द्रोण वहां पर आये । पूरी तरह से शांत था और राजकुमारों का गिल्ली डंडा का खेल चल रहा था, और वह देख रहे थे ।

उन्होंने क्या देखा कि खेलते खेलते गिल्ली कुएं में जा गिरी । सारे राजकुमार खडे खडे देखने लगे। ब्राह्मणों के पास आया और उसने कहा, “राजकुमार, तुम तो क्षत्रिय हो, देखो इतनी छोटी सी गिल्ली भी नहीं निकाल सकते? कहो तो मैं निकाल दूं, तब आप मुझे क्या दोगे? ” युधिष्ठिर ने कहा, “यदि आप इसे निकाल कर देंगे तो वहां पर आपके लिए हम भोजन की व्यवस्था करेंगे ।”

2. Acharya Drona का प्रतिशोध , द्रोणका अजब कौशल

तब ब्राह्मण ने पास में पड़ी हुई लकड़ी का टुकड़ा उठाया । उस पर मंत्र पढ़कर कुएं में डाला। जैसे वह चली कुएं में गिरी, तो गिल्ली को वह जुड़ गयी । और इस तरह बहुत सारी लकड़ी के टुकड़ों को मंत्र मार मार के ब्राह्मण ने पानी में डाला ।

वह गिल्ली को जाकर चिपक गए । इस तरह वह ब्राह्मण ने बहुत सारी लकड़ी की टुकड़ों को मंत्र मार कर कुएं में डाला। यह सारे लकड़ी की टुकडे गिल्ली से जा मिले और एक बड़ा हार बन गया। हार का एक सिरा किनारे पर आकर गिरा । ब्राह्मण ने उस सिरा को पकड़ के वह पूरा हार खींच लिया । गिल्ली उनके हाथ में आ गई ।

राजकुमार बड़े आश्चर्य से यह सब देख रहे थे। गिल्ली मिलते ही नाचने कूदने लगे और कहने लगे, “ब्राह्मण अब हमारी अंगूठी भी निकाल दो ।”  हंसते-हंसते ब्राह्मण ने वह अंगूठी भी उनको इसी तरह निकाल कर दी ।

3.चमत्कार करनेवाला ब्राह्मण कौन था ? आचार्य द्रोण

यह चमत्कार देखकर सारे राजकुमार चकित रह गए । ब्राह्मण को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और पूछा, “महाराज, हम आपको प्रणाम करते हैं। आप कौन हैं? हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं? आज्ञा दीजिए ।”

ब्राह्मण ने प्रेम पूर्वक कहा,“राजकुमार, तुम लोगों को मेरा परिचय चाहिए? देखो जो अभी घटना घटी है, वह पितामह भीष्म को बताना वह मुझे पहचान जाएंगे ।”

सारे राजकुमार दौड़ते दौड़ते अपने पितामह के पास गए और पूरी बात बताई । उन्होंने पूछा, “यह कौन हो सकता है?”

“यह आचार्य द्रोण है । यह भगवान परशुराम से उसने ज्ञान का प्रसाद लिया है । यही ब्राह्मण है ।” इसी तरह उसी समय पितामह ने एक निश्चय किया कि अब हमें राजकुमारों को वैसे भी अस्त्र विद्या सिखानी है। तो Acharya Drona ही सिखाएंगे । पितामह आचार्य के पास गए और आचार्य का बड़ा सम्मान किया।

Acharya Drona – प्रतिशोध की नीव गढी । और इस तरह द्रोणाचार्य कौरव और पांडवों के गुरु हो गए। होते होते कर्ण, दुर्योधन, पांच पांडव और सारे राजकुमार द्रोणाचार्य के पास अस्त्र विद्या सीखने लगे।।

एक बार Acharya Drona को लगा चलो देखते हैं, इन्होंने कितनी विद्या सीखी है और कितने माहिर हुए हैं? तो उनकी मैं एक परीक्षा लूंगा ।

4. Acharya Drona ने पांडव – कौरवकी परिक्षा ली

उन्होंने एक कारीगर को बुलाया और उसके पास एक आसमानी रंग का पंखी बनवाया । यह पंखी को उसने ऊंचे से ऊंचे पेड़ की ऊंची से ऊंची डाल पर लटकाया । फिर सारे राजकुमार को वही जमा करके आचार्य ने कहा,“सभी लोग सभी शिष्य धनुष्य बांध के सज्ज हो जाओ । सामने जो पंछी तुम्हें दिख रहा है, एक-एक करके तुम्हें उस पंछी की गर्दन पर तीर चलाना है। उसकी गर्दन को काट देना । मैं जब आज्ञा करूं तब यह काम करना।”

सारे राजकुमार विनम्र भाव से गुरु की आज्ञा की राह देखने लगे।उतने में आचार्य ने युधिष्ठिर से कहा, “धर्मानंदन, पहले तुम धनुष्य बाण सब लोग क्योंकि तुम सबसे बड़े हो ।

मैं कैसे कहूं तभी तुम्हें निशान काटना है और तीर छोड़ना, अरे तुम तो तैयारी तो कहो यह पेड़ पर बैठा हुआ पक्षी तुम्हें दिख रहा है जिसने कहा भगवान देख रहा हूं और तुम यह भी देख रहे हो कि तुम्हारे दूसरे भाई और हम लोग यहां पर खड़े है । ”

“हां भगवान मैं देख सकता हूं ।” निराश हो गए उन्होंने कहा, “तुम्हारा निशान नहीं लगेगा, छोड़ दो।”

आचार्य ने यही सवाल बाकी के सारे शिष्यों को पूछा । उन्हीं से भी उनको उसी तरह का जवाब मिला। तो सबको उसने मना कर दिया कि तुम निशाना नहीं लगा पाओगे ।चले जाओ । उसके बाद में दुर्योधन को भी पूछा, उसने भी उसी तरह का उत्तर दिया, इसके लिए उसे भी उन्होने भेज दिया।

5.अर्जुनकी एकाग्रता और लगन

अब सिर्फ अर्जुन बचा था और आचार्य ने उस से कहा, “हे व्त्स, अब तुम्हारी बारी है। देखो मेरा नाम मत खराब करना । तुम को मुझ में खूब श्रद्धा है और तुम्हारा भक्ति भाव भी अनोखा है। अस्त्र विद्या सिखाने में तुमने बहुत प्रेम और बड़ी मेहनत की है। तैयार हो जाओ मैं कहूं यह बात समझो।” अर्जुन धनुष्य बाण लेकर सज्ज होकर तैयार हो गया । निशान देख कर तैयार होकर खड़ा रह गया।

तब गुरु बोले, “बेटा, तुम पेड़ को देख रहे हो अपने भाइयों को देख रहे हो, मुझे देख रहे हो यह जंगल को देख रहे हो?”

अर्जुन ने बड़ी सरलता से कहा,“भगवान, मुझे पेड़ नहीं दिखता। ना मेरे भाई दिखते हैं। ना आप दिखते हैं। मैं सिर्फ उस पक्षी की गर्दन को देख रहा हूं और कुछ नहीं देख सकता।”

Acharya Drona ने प्रसन्नता पूर्वक उसे फिर से पूछा, “क्या तुम उस पंछी को पूरा पूरा देख रहे हो?”

अर्जुन ने जवाब दिया “नहीं भगवान, मैं पंछी को पूरा नहीं देख पा रहा हूं। मैं सिर्फ उसकी की गर्दन देख रहा हूं।”

“हां बस, उनको अब तुम छोड़ सकते हो और पक्षी की गर्दन तोड़ दो।” एक लक्ष्य से अर्जुन ने एक लक्ष्य से अर्जुन ने पंछी की गर्दन तोड़ डाली । आचार्य को उस पर बड़ा आश्चर्य हुआ और अर्जुन को गले लगाकर उसने कहा, “एकाग्रता ही एक चीज है, जिससे कोई भी काम कर सकते हैं। तूने यह अपनी एकाग्रता का और अपनी शक्ति को सिद्ध किया।”

6.गुरु दक्षिणा

अब गुरु दक्षिणा का समय आया और आचार्य ने कहा, “अब तुम्हारी पढ़ाई खत्म हुई है। अब तुम्हें मुझे गुरु दक्षिणा देना है। क्या दोगे?” Acharya Drona – प्रतिशोध के लिए और द्रुपदको पाठ पढाने तैयार हो गये ।

सबने कहा,“भगवान आप हमें आज्ञा कीजिए । हम आपके सेवा के दो।”

Acharya Drona ने बड़े गंभीर स्वर से कहा, “ पांचाल देश है वहां का राजा है उसको कैद करके मेरे सामने ला दो । यह गुरु दक्षिणा मुझे चाहिए । ये सुनते ही कर्ण और दुर्योधन द्रुपद पर हल्ला लेकर गए। द्रुपद ने दोनों का सामना किया और उनको अच्छी तरह से मार के वापस भेज दिया और दोनों अपने पराजय का काला टीका लेकर वापस आ गए । तभी आचार्य ने आज उनसे कहा, अब तुम जाओगे अर्जुन ।

अर्जुन ने जवाब दिया “हां भगवान ।” और हां कह कर अपने गुरु का आशीर्वाद लेकर चल पड़ा । और पांचाल देश की तरफ हल्ला ले गया । द्रुपद को ऐसे समाचार मिले  इसीलिए वह अपनी राजधानी के बाहर आया। वहां पर युद्ध हुआ अर्जुन ने बड़ी वीरता दिखाई एक छलांग मार के वह द्रुपद के रथ में कूद पड़ा और द्रुपद को कैदी बनाकर लेकर गया ।

राजन कैद में पड़ा, इसीलिए सारा सैन्य इधर-उधर भागने लगा । और राजकुमार सेनादल के पीछे पड़े । और अर्जुन ने भी उससे कहा कि यह गरीब सैनिकों को तुम क्यों तंग कर रहे हो? जो द्रुपद को कैद करके अर्जुन और बाकी के राजकुमार आचार्य के पास उसको लेकर आए।

अर्जुन ने कहा “भगवान, आपने गुरु दक्षिणा की आज्ञा की थी, यह अपनी गुरु दक्षिणा आप स्वीकार करो और हम पर कृपा करो।”

उसी समय आचार्य द्रोण द्रुपद के सामने देखा तभी द्रुपद का मुंह पूरा मलिन हो गया था और आचार्य के मुख पर एक अजब सी हंसी चमक रही थी । दोनों मित्र थे, एक ने अपमान किया दूसरे ने यह अपमान का बदला लिया।

Acharya Drona
Acharya Drona

आचार्य ने कहा ”डरना मत तुम अमीर हो । तुम्हें तकलीफ की कोई चिंता रखनी नहीं चाहिए । देखो हम बचपन के मित्र हैं। हम लोग साथ में साथ में नाचे कूदे। हमारा उठना, बैठना, खाना- पीना, पढ़ना ,सोना सब एक साथ में गुरुजी के आश्रम में हुआ है। लेकिन तुम जैसे ही आसन पर बैठे तो तुमको पूरा राज्य मिला और मेरे हाथ में कुछ नहीं आया। मैं जब तुम्हारे पास सहायता के लिए आया, तब मुझे तुमने क्या कहा? राजा का मित्र तो राजा ही होता है।

राज के बिना उससे मैत्री हो ही नहीं सकती। तुमने मुझे अपमानित करके भेज दिया । लेकिन तुम्हारे साथ मुझे अभी भी मैत्री मैं रखने जा रहा हूँ । आज तुम राजा नहीं,  मैं राजा हूं तुमको मैं आधा राज्य देता हूं क्योंकि तुम मेरी कैद में हो और तुम्हारा सेनानी भाग चुका है, इसीलिए तुम्हारा राज अब मेरा हुआ । उसमें से आधा हिस्सा मैं तुमको देता हूं। तो तुम भी राजा बनोगे और हम लोग दोनों मित्र राजा राज करेंगे।”

7.द्रुपदकी सजा

द्रुपद वीर ब्राह्मण आचार्य द्रोण की बातें सुनकर एकदम लज्जित हुआ । उसको अपमान भी लगा । उसने अपना सर झुकाया । Acharya Drona के सामने खड़ा रहा और उसने कहा,“आचार्य आप वीर हो, तेजस्वी हो और महात्मा हो और क्षमाशील भी हो । उदार हो । और मेरा अच्छा सोचने वाले हो ।हमेशा मैं तुम्हारा मित्र रहूंगा। मेरी मूर्खता और अभिमान से मैंने तुम्हारा अपमान करके बहुत बड़ा अपराध किया । उसके लिए मुझे क्षमा कीजिए।”

 Acharya Drona यह सुनकर रोने लगे और अर्जुन से कहा कि “द्रुपद के बंधन खोल दें।“”

आधा राज्य देकर उनको बडा मान देकर छोड़ दिया। द्रुपदका  अभिमान चूर चूर हो गया। लेकिन फिर भी उसके मन से अपने मित्र के लिए बदले की भावना नहीं गई । पांचाल देश वापस आते ही उसने व्रत प्रतिज्ञा की – कि मुझे पुत्र हो और वह द्रोण को मारे। एक पुत्री हो वह अर्जुन के साथ शादी करें। और उसको पुत्र हुआ ।  धृष्टदुम्न और इस तरफ एक और महाभारत के युद्ध की प्रक्रिया की शुरुआत भी।   

महाभारत के युद्ध में (Dushyadyuman) धृष्टदुम्न (द्रुपदका पुत्र)  ने Acharya Drona को मारा था। श्रीखंडीने अर्जुन के रथ में खड़े रहकर पितामह भीष्मसे उसका रक्षण किया था । और द्रोपदी की वजह से कौरव कुल का पूरा नाश हो गया।

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