गुस्सा और अहंकार से क्या हाँसिल ? 2 Important Things – Anger and Ego Harm Us

गुस्सा और अहंकार से क्या हाँसिल ? 2 Important Things – Anger and Ego Harm Us

How Anger And Ego harm Us गुस्सा और अहंकार का फल क्या होता है ? सभीका नुकसान ही होता है।

     2 things Anger and Ego Harm Us –  गुस्सा और अहंकार की कहानी – बसंत की शांति और सुहानी ऋतु चल रही थी। हर जगह, चारों तरफ, पेड़ों पर अनेक रंगबिरंगी फूल खिल रहे थे। एक मनमोहक सुगंध वातावरण में  फैल रही थी। सब जगह सौंदर्य तथाहरीयाली छाई थी।  उसी समय ऋषि के आश्रम में एक सुंदर स्त्री घूम रही थी।

वह बड़ी  सात्विक और धैर्यवान थी ।वह सुखी व सुशील थी। अचानक यहां पर युवक गया और वह सुंदरी को देख कर उस पर मोहित हो गया।  उसके सर पर वासना सवार हो गई।  तब उसने उस सुंदरी को विनती कि की आप मेरे पास आओ। यह सुनकर वह सुंदरी सुचिता एकदम शर्म से झुक गई । और आश्चर्यचकित  हो कर वहां से चल पड़ी।

         डर की वजह से वह दूसरी तरफ एकांत जगह मे चली गई। यवकृत भी उसके पीछे  एकांत जगह  पर गया। और  सुंदरी को लगा उसका बहुत बड़ा अपमान हुआ।

         ऋषि रैभ्य जब आश्रम में आए, तब उस की पुत्रवधू सुचिता ने रो रो के उनको सारी बातें बताई।रैभ्य यवकृत का बुरा व्यवहार  जान गए और उन्हे बड़ा क्रोध ( anger ) आया। उन्होंने एक बाण के उपर मंत्र लगाया और पास में जो होम चल रहा था वहां उस अग्नि में डाला। उसी समय वहां अग्नि से बिल्कुल उसके बेटे की बहु की तरह दिखने वाली,कन्या प्रकट हुई । ऋषि ने और एक बाण अभिमंत्रित करके उसे अग्नि में डाला और जैसे उसने  अग्नि में डाला, तो अग्नि में से एक पिशाच प्रकट हुआ।दोनों ने उनसे कहा, “हमसे क्या चाहते हो? हमारे लिए क्या आज्ञा ?”        

रैभ्य गुस्सा और अहंकार का फल
रैभ्य गुस्सा और अहंकार का फल

 रैभ्य ने कहा, “ यवकृत को मार डालो।” उतने में यवकृत कुछ काम से बाहर निकला तब वह होम अग्नि से पैदा हुई लड़की वहां मौजूद थी। उसे देखकर  फिर से उसका मन विचलित हो गया और उसके पीछे पागल हो गया। उसको कुछ समझ में नहीं आया। वह फिर से उसी कन्या पर मोहित हो गया और उसके पीछे भागने लगा । उसके होश चले गए और उतने में उसका कमंडलु हाथ से गिर गया और वह कन्या कमंडलु लेकर वहां से चली गई। गुस्सा ( Anger ) और अहंकार की कहानी मे आगे क्या होता है – पढें।

            उसी वक्त पिशाच वहां दौड़ता हुआ आया। उसके हाथ में एक बड़ा चमकता हुआ भाला था। उसने वह भाला यवकृत के शरीर में भोक दिया, उसने उस भाले से यवकृत का वध किया।  । भारद्वाज पुत्र यवकृत घायल हो गया। उसको लगा कि चलो मैं पिशाच को श्राप देता हूं। तो श्राप देने के लिए कमंडलु में पानी के लिए देखा , कमंडलुमे पानी था नहीं और वह कमंडलु तो वह लड़की लेकर चली गई थी । वह डर गया।

फिर भी वह पानी की खोज में वहां से निकला । वहां पर एक तालाब था उसकी तरफ दौड़ा। लेकिन तालाब तो सूख गया था। उसने सोचा चलो पास में कोई एक छोटा सा झरना है उसमें से पानी ले लूंगा । लेकिन उसमें एक बूंद भी पानी नहीं था, पर वहां से आगे गया ।वहां कहीं भी उसे पानी नहीं मिला, लेकिन वह विश्वास से उसके पीछे पीछे दौड़ रहा था । गुस्सा और अहंकार कभी कोई बातका हल नही हो सकता ।

        लेकिन उसकी जिंदगी में अब सिर्फ भागम भाग ही रह गई। उसका सब तपोबल जल गया। देवता से प्राप्त वरदान, -उसका अभिमान तथा उसकी रैभ्य से की गई इर्षा के कारण खत्म हो गया। अब कोई चारा नहीं था, इसीलिए वह अपने पिता की यज्ञशाला में छुप जाने के लिए दौड़ा । वह गौशाला के द्वार पर पहुँचा। द्वारपाल वह एक आँख से अंधा था। इसीलिए उसने यह नहीं देखा कि यह घायल है और उसको उसने अंदर नहीं जाने दिया। जैसे वह रुका,  उसको पकड़ा और उसको भाले से मारा। तुरंत यवकृत मर गया। गुस्सा और अहंकार का बडा बुरा परिणाम । इसलिए हमे कभी गुस्सा नहीं करना चाहिए ।

               भारद्वाज आश्रम में वापस आए तो यज्ञशाला का पूरा तेज उठ गया था और यज्ञशाला के दरवाजे पर यवकृत का शव पड़ा था । भारद्वाज को तुरंत सब कुछ समझ में आ गया। यह बात तय है कि लगता है कि मेरे पुत्र ने ही कुछ गलती की होगी तभी उसे प्राण दंड मिला होगा । क्योंकि वह यवकृत को जानता था कि परेशानी की वजह क्या हो सकती है। भारद्वाज महान ऋषि थे लेकिन फिर भी वह एक पुत्र के पिता थे।

उनका ह्रदय बहुत ही शोकसे व्याप्त हो गया। वह रोने लगे और कहा,“मेरे बेटे,आखिर तेरे अभिमान ने ही तेरी जान ली। तुझे इंद्र का वरदान मिला सबसे श्रेष्ठ वेद का ज्ञान मिला,  तेरा मान बढा। लेकिन तेरे कर्म से तुने अपनी जान गवाइ । और रैभ्य  मेरे मित्र होकर तुमने मेरे पुत्र को मार डाला ।”

           इस विचार से वे गुस्सा हो गए । उन्होंने उसी वक्त अपने मित्र को शाप दिया। किंतु उनकी तुरंत सोच में आया कि मैंने यह क्या कर दिया? जिसको कोई पुत्र नहीं है, वह तो भाग्यशाली है । भारद्वाज सोचने लगे मेरा बेटा मर गया और मैंने अपने मित्र को भी शाप दे दिया । मैंने यह बहुत ही गलत काम किया। इससे अच्छा तो मुझे ही मर जाना था। यह निर्णय करके भारद्वाज मुनि ने अपने पुत्र की जो चिता जल रही थी, उसमें अपनी जान दे दी। मह्र्षि लोमेशने पाँडवोको यह कथा सुनाई। इसलिए हमे कभी गुस्सा – anger नहीं करना चाहिए । ऐसी और कहानी यहा पढें।

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सीख गुस्सा और अहंकार से सभी को नुकसान होता है।

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