Arjun in द्रौपदी का स्वयंवर 2 अर्जुनका कौशल

Arjun in द्रौपदी का स्वयंवर 2 अर्जुनका कौशल

धृष्टद्युम्न की घोषणा

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Arjun का कौशल ,यह घोषणा करने के बाद धृष्टद्युम्न द्रौपदी की तरफ देखकर बोला , “देखो बहन, यहाँ पर हमको देखने को मिल रहे भारतवर्ष के बहुत सारे क्षत्रिय राजा जैसे धृतराष्ट्र का पुत्र दुर्योधन, युयुत्सू, विकर्ण, दुशासन, अश्वत्थामा, विराट के राजा सुशर्मा ,वासुदेव, शल्य, शिशुपाल, ज़रासंध और अन्य कई राजा महाराजा यहाँ पे हाजिर हैं । जो वीर यह धनुष्य  को उठा के उसका लक्ष्य भेद करता है और पांच तीर यंत्र के बीच से भेजता है उसी को तुमने वरमाला पहनानी है।”

     ब्राह्मणों ने अपना मंत्रोच्चार शुरू किया और यज्ञ में आहुति दी और फिर “स्वस्ति स्वस्ति”, करके द्रौपदी को आशीर्वाद दिया । फिर द्रौपदी का हाथ धृष्टद्युम्न ने पकड़ा और दोनों भाई और बहन मंडप के बीच गए । आगे फिर द्रुपद के युवराज ने  ऊंचे स्वर में एक घोषणा की ।

  “सारे वीर क्षत्रिय इस बाण और धनुष्य की तरफ देखें,उस निशान की तरफ देखें, जहाँ मछली घुम रही है। जो कोई भी  रूपवान, गुणवान वीर, मछली के निशान को लांघदेता है और पांच बाण उस यंत्र के बीच से निकाल सकता है; उसी को मेरी बहन कृष्णा अपना पति मान लेगी । सारे क्षत्रिय एक के बाद एक आएं और लक्ष्यवेध करें । सबसे पहले आयेंगे जो सबसे बड़े राज्य के अधिपति हैं । उसके बाद एक के बाद एक अपनी हैसियत, औधे के हिसाब से आएँ और अपना कौशल और ताकत दिखाएँ ।”

     जिस समय धृष्टद्युम्न यह बात कह रहा था, तब आकाश से रुद्र, आदित्य, वसु, अश्विनी  कुमार, साध्य, मरुद्गण, यमराज, कुबेर, दैत्य, गरुड, नाग, देवर्षी और मुख्य गांधार भी वहाँ उपस्थित थे । वासुदेव नंदन बल राम और भगवान श्री कृष्ण, मुख्य यादव और बहुत सारे महानुभव यहाँ पे हाजिर थे।

सभी शक्तिशाली राजा हार गए लेकिन एक गरीब ब्राह्मण जीत गया

      Arjun का कौशल : इसके बाद में धृष्टद्युम्न ने सभी राजकुमारों का द्रौपदी से परिचय कराया । तब जाके एक के बाद एक राज कुमार धनुष्यको प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए खड़े हो गए। इसमें से बहुत सारे तो धनुष्य  को उठा ही नहीं सके ।  किसी ने अगर उठा लिया, तो उसके वजन से, उसके नीचे दब गए । कई कमान खींचने तक पहुंचे लेकिन फिर कुछ नहीं कर पाए । इस तरह अपना पराजय और नाकामी से मायूस होकर, सारे राज कुमार अपनी- अपनी जगह पर बैठ गए। लगता था यहाँ पे क्षत्रियों का तेज पूरा खत्म हो गया ।   

             धृष्टद्युम्न की बात सुनकर दुर्योधन, शाल्व, शल्य और बहुत सारे राजा राजकुमारों ने अपने बल, शिक्षा, गुण और क्रम के अनुसार धनुष्य उठाके प्रत्यंचा चढ़ाने की कोशीश की । लेकिन उनको इतना झटका लगा कि वो धनुष्य  के बल से नीचे गिर पड़े । कुछ तो बेहोश भी हो गए । इसी डर से और लोग जो वहाँ द्रौपदी को पाने की आशा में आए थे, वे बैठे रहे और आगे नहीं आए । उनका तो मन बैठ गया । द्रौपदी को पाने की आशा छोड़ कर अपनी-अपनी जगह पर बैठ गए ।

दुर्योधन को उदास और निराश देखकर धनुर्धर शिरोमणि कर्ण खड़ा हुआ। उसने धनुष्यको झटपट उठा लिया और प्रत्यंचा धनुष्य पर चढ़ाई ।  सबको लगा कि अब अंगराज कर्ण जरूर इस धनुष्य  बाण से मछली का लक्ष्यवेध करेंगे । लेकिन उतने में द्रौपदी ज़ोर से बोली, “ मैं एक सूतपुत्र से  विवाह नहीं करूँगी।”

कर्ण ने यह सुनकर ईर्ष्या भरा हास्य किया और सूरज की ओर देखा, फिर धनुष्य को नीचे रख दिया । इस चोट से सहमते हुए, कर्ण अपनी जगह पर बैठ गया । यह सब देखकर बहुत लोग निराश हो गए । तब शिशुपाल आगे आए, लेकिन धनुष्य  हाथ में उठाते ही वह जमीन पर गिर गए । जरासन्ध की भी वही दशा हुई ।

पांडव अपना भेस बदली कर अब गुप्त हो गए थे, पाँचों ने अपनी दाढ़ी और बाल बढ़ा लिए थे । वे भिक्षुक ब्राह्मणों के कपड़े पहने हुए थे, इसके अलावा उपस्थित सभी लोगों को पता थी कि वे जल गए थे और मृत थे । इसलिए किसी ने उन्हें नहीं पहचाना । श्री कृष्ण पहले से ही जानते थे कि वे बच गए हैं और जीवित हैं ।

Arjun

Arjun का कौशल अर्जुन लक्ष्य भेद में सफल होता है

तब ब्राह्मणों के मंडल से एक तरुण ब्रह्मचारी उठा (अर्जुन ) । और उसको देखते ही लोगों की सभा में बिलबिलाहट चालू हो गई ।  सब तरह तरह की बातें करने लगे, ब्राह्मणों में भी दो पक्ष हो गए। एक पक्ष ने इस तरुण को उत्साह दिया जैसे वो ही खुद धनुष्य उठाकर लक्ष्य भेद करेगा ।और दूसरों ने उनको नीचे गिराया। एक पक्ष ने कहा कि जो काम में शल्य, कर्ण और जरासंध जैसे बड़े बड़े महारथी कुछ नहीं कर पाए उसमें यह अदना सा ब्राह्मण क्या कर पाएगा?  हमारे लिए एक बड़ा अपमान होगा ।

तब दूसरा पक्ष कहने लगा ,“यह युवा में कितना उत्साह है । उसके मुँह से कितना तेज चमक रहा है । हमें तो लगता है कि यह युवा जरूर सफल होगा । वह उस लक्ष्य को जरूर पहुंचेगा लेकिन हो सकता है ब्राह्मणों में क्षत्रियों जैसी ताकत न हो, पर क्षत्रियों को उचित काम करने का उसे शायद ज्ञान हो । फिर भी ब्राह्मण में एक तपोबल की ताकत होती है । यह तपोबल शारीरिक कमी पूरी करता है । उसको एक मौका दिया जाना चाहिए ।”

सारे वाद-विवाद बंद हो गए और सभी ब्राह्मणों ने उस तरुण को आशीर्वाद दिया । arjun धनुष्य के पास गया खड़ा रहा और उसने धृष्टद्युम्न से पूछा, “ राजकुमार, ब्राह्मण लक्ष्य भेद कर सकता है ना? स्वयंवर में भाग लेने को उनका अधिकार है ना?” अर्जुनका कौशल ब सबको म्हत करेगा ।

    धृष्टद्युम्न ने जवाब दिया , “ऋषीवर, जो कोई भी धनुष्य की कमान चढ़ाएगा और शर्त के हिसाब से लक्ष्य भेद करेगा उसको मेरी बहन पति मानेगी । द्रुपद राज लक्ष्यभेद करने वाले में कौशल, बल और  बुद्धि ढूँढ रहे है । भले वह ब्राह्मण हो या क्षत्रिय हो ।”

    अब arjun ने आंखें बंद करके भगवान नाराजण का ध्यान किया और धनुष्य की कमान को बाण पर चढ़ाया । सारे लोग एकदम मंत्रमुग्ध होकर उसको देख रहे थे। कोई ज्यादा सोचे या आगे बात करें , उसके पहले, अर्जुन ने एक के बाद एक पांच बाण चलाएँ और फिर उस घूमती हुई मछली का वेध कर दिया। निशान टूट कर नीचे आ गया। सारी सभा में एकदम कोलाहल मच गया। अर्जुनका कौशल दिख गया लकिन किसीने से पहचाना नही ।

arjun की सफलता से लोग खुशी का प्रदर्शन करने लगे। लेकिन खासकर क्षत्रिय जो असफल रहे वे और मायूस और गुस्सा हो गए । लेकिन तब तक तो संगीत के वाद्य और विवाह  के नगारें बजने लगे और ब्राह्मणों ने आनंद का प्रदर्शन किया । कुछ ही देर में द्रौपदी ने अर्जुन को वरमाला पहनाई ।

  सभा में और ब्राह्मण तो बैठे रहे ; लेकिन युधिष्ठिर, नकुल और सहदेव वहाँ से उठकर चले गए । उसके दो कारण थे । एक तो उनको माता जी को यह खुशखबर देनी थी, और दूसरा पांचों पांडवों को एकसाथ देखकर कहीं कौरव उनको पहचान न लें और उनकी तकलीफ बढ़ ना जाए।

        जो क्षत्रिय यह सारी बातें देख रहे थे, वह काफी मायूस हो गए । निराशा में शायद अर्जुन पर हमला ना करे, यह सोचकर भीम पीछे रह गया । भीमसेन की यह शंका सच हो गई ।

       राजकुमारों में बड़ा शोर-गुल मच गया और राजकुमारों का जोश बढ़ गया । वह ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगे ,“ स्वयंवर राजकुमारों के लिए ही होते  है, ब्राह्मणों के लिए नहीं । एक ब्राह्मण को कैसे द्रौपदी वरमाला पहना सकती है ? अगर उसे कोई क्षत्रिय पसंद नहीं आया तो उसे जिंदगी भर विवाह नहीं करना चाहिए । लेकिन उसे ब्राह्मण से तो विवाह नहीं करनी चाहिए । यह कैसे हो सकता है? स्वयंवर की जो प्रथा है उसके लिए यह बहुत घातक है । इस तरह धर्म की रक्षा करने के लिए भी यह विवाह नहीं होना चाहिए ।”

arjun और भीम की अन्य राजासे लडाई

       arjun का कौशल और बहादुरी , भीमका बल अब दिखेगें । सारे राजा, अर्जुन और भीम पर हमला करने के लिए आगे आ गए । सब ने अपने अस्त्र शस्त्र उठा लिए और उसके साथ में द्रुपद राजा को भी मारने को आगे बढ़ें । राजाओं को एकदम क्रोधित हुआ देखकर द्रुपद डर गए । वह ब्राह्मण अन्य राजासे लडाई शरण में गए ।

   इतना शोर हो गया और क्षत्रिय राजकुमारों का जोश बहुत बढ़ गया । मानो की जैसे बड़ा विप्लव जाग उठा । यह सब देखकर भीमसेन चुपचाप बाहर निकल आया और एक बड़े पेड़ को जड से उखाड़ के उसके पत्ते निकाल के उसने उसकी लाठी बनाई । लाठी अपने कंधे पर डालकर वह फिर arjun के पास आकर खड़ा रहा । अर्जुन तो तब ग्रामीण वेश में था । उसने मृग चर्मअपने शरीर पर चढ़ाया था और कृष्णा इस मृग चर्म को पकड़ के बड़ी शांति से खड़ी थी।   

द्रुपद को भयभीत और राजाओं को आक्रमण करता देखकर भीमसेन और arjun उनके बीच में आ गए।  क्रोधीत राजाओं पर उन्होंने आक्रमण कर दिया । दोनों ब्राह्मणोंने एक आवाज में चर्म और कमंडल हिलाते हिलाते कहा – डरना मत हम तुम्हारे शत्रुओं से लड़ेंगे । इन लोगों के लिए तो मैं अकेला ही काफी हूं भीमसेन ने कहा । arjun धनुष्य चढ़ा के भीमसेन के साथ अविचल भाव से उनके सामने खड़ा हो गया।

कर्ण arjun लडे

       कर्ण उस समय दोनों भाईयों  के सामने आकर उन पर टूट पड़े। वहां हाजिर कई वीरो ने कहा “ ब्राह्मणों को युद्ध में मारना यह कोई धर्म नहीं है।” यह सोचकर वे लोग आक्रमण करने लगे, अर्जुन और कर्ण आमने- सामने आ गए।

    दोनों अपना अपना कौशल दिखाने लगे कर्ण ने कहा, “ अरे ब्राह्मण, आप तो ब्राह्मण होने के बावजूद ऐसा हाथ कौशल दिखा रहे हो । मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है कि मेरे जैसा कोई वीर मेरे सामने खड़ा रहकर मुझे ही ललकार रहा है । तुम्हारे मुख पर कोई डर की निशानी नहीं है। तुम्हारा हाथ का कौशल बड़ा ही अनोखा है। कही तुम खुद परशुराम तो नहीं ना? ”

     मुझे ऐसा लगता है कि स्वयं विष्णु अथवा इंद्र , गुप्तवेश लेकर मेरे सामने युद्ध कर रहे हो । मेरी मान्यता ऐसी है के मैं अगर क्रोधपूर्वक युद्ध करु, तो देवराज इंद्र और पांडु नंदन arjun के सिवाय मेरे सामने कोई नहीं टिक सकता। अर्जुन ने कहा, “कर्ण मैं कोई साक्षात इंद्र या परशुराम नहीं । मैं  सिर्फ सभी शास्त्रों और अस्त्रों को जानने वाला एक ब्राह्मण योद्धा हूं । मेरे गुरुदेव की आशीर्वाद से ब्रह्मास्त्र तथा इंद्रास्त्र का भी मुझे पूरा अभ्यास है । मैं तुम लोगों को जीतने के लिए यहां पे खड़ा हूं। चाहो उतना जोर तुम लगा लो।” arjun का कौशल कर्ण पर भारी पडा ।

   कर्ण यह सुनकर, तथा arjun का कौशल और बल देखकर वहाँ से हारने के डर से भाग गए। अर्जुन और कर्ण जब एक दूसरे के साथ टकरा रहे थे, उसी समय, दूसरी तरफ शल्य और भीमसेन एक दूसरे को ललकार के हाथियों की तरह युद्ध कर रहे थे एक दूसरे को पछाड़ने की कोशीश कर रहे थे । अलग अलग दांव पेंच कर रहे थे । कुछ पलों के लड़ने के बाद भीमसेन ने शल्य को जमीन पर गिराया और सब ब्राह्मण हंसने लगे । इस तरह जैसे भीमसेन ने शल्य को हराया और कर्ण भी युद्ध से हट गया ।

  उस वक्त श्रीकृष्ण और बलराम सारे राजा और राजकुमारों को शांत करने के लिए प्रयत्न कर रहे थे ।वह समझा रहे थे, उतने में भीम और arjun द्रौपदी को लेकर चुपचाप कुंभार की झोपड़ी पर पहुँच गए ।

जैसे ही पांडव घर पहुंचे तब अर्जुन ने माँ से कहा, “आज भिक्षा लाने में देर हो गई? लेकिन हम लोग ऐसी भिक्षा लाए हैं, कि आप खुशी से फूले नहीं समाएगी।”

भिक्षा को देखे बिना ही,  कुन्ती माता ने उनको कह दिया के, “ देखो बेटा, आप पांचों भाई मिलके उसका उपभोग लेना । जो भिक्षा लेकर आया है, वही अकेला कही उसका उपभोग ना ले।”

बाहर आके कुन्ती ने देखा कि यह द्रौपदी है । तो उसके पश्चातापकी कोई सीमा नहीं उसने कहा ,“अरे मैंने क्या कर दिया?” 

     कुन्ती ने तुरंत द्रौपदी का हाथ पकड़ा, उसे युधिष्ठिर के पास ले गई। कुन्ती ने युधिष्ठिर से कहा, “बेटा, जब भीमसेन और अर्जुन राजकुमारी को अन्दर लेके आए, तब मैने बिना देखे कह दिया कि सब मिलके इसका उपभोग करना । लेकिन मुझे यह पता नहीं था कि आप द्रौपदी को स्वयंवर से जीत के लाए हो । मैने कोई असत्य बात नहीं करी। अब तुम लोग इसका उपाय ढूंढो । द्रौपदी के साथ अधर्म नहीं होना चाहिए और मेरी बात भी मिथ्या नहीं होनी चाहिए। कुछ ऐसा उपाय निकालो।”

 युधिष्ठिर ने थोड़ी देर में सोच कर माता को उपाय निकालने का आश्वासन दिया।

arjun को बुलाके उसने कहा, “मेरे भाई, तुमने धर्म और मर्यादा के हिसाब से द्रौपदी को जीता है। अब द्रौपदी को मैं पांचों पांडव के साथ विवाह करने की आज्ञा देता हूं । विधि के हिसाब से, अग्नि की साक्षी से इसका पानी ग्रहण करो। ।”

तब अर्जुन बोला, “भाई, द्रौपदी को मेरी विनती है के तुम्हारी बुद्धि के हिसाब से धर्म, यश और सभी के  हित में जो भी उचित रहेगा, उसी को हम अमल करें।”

द्रौपदी यह सब देख रही थी। कुन्ती ने उनको पूछा, “इस तरह का फैसला क्या आपको कबूल है? ”

तो द्रौपदी ने कहा ,“मैं आप के घर में आई हूं। यहाँ का जो कुछ भी है वह सब आप की वजह से है । मैं आपकी और सबसे बड़े – युधिष्ठिर की मैं आज्ञा मानूंगी और जो आप ठीक समझो वैसा मैं करूँगी। ।”

श्रीकृष्ण की पांडवों से भेट

अर्जुन 
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स्वयंवर के समय, श्री कृष्ण ने पांडवों को पहचान लिया था। तो इसलिए वह भी उनके पीछे पीछे कुंभार  के घर में आ गए। पांडवों ने उनका बड़े प्यार से स्वागत सत्कार किया । बलराम और श्रीकृष्ण ने अपनी फूफी कुन्ती का चरण स्पर्श किया और युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कुशल समाचार पूछे। फिर उनको प्रश्न किया, “भगवान, हम लोग तो यहाँ छुपके रहते है, तो फिर आपने हमें कैसे पहचान लिया?”

       भगवान श्रीकृष्ण ने हंसते हंसते कहा, “अग्नि को कौन नहीं पहचानता? आज रंगमंच पर जो पराक्रम और कौशल का भीमसेन और अर्जुन ने हमको परिचय कराया है, ऐसा पराक्रम पांडवों के सिवाय किसको करना शक्य होगा? और दूसरी एक अच्छी सौभाग्य की और आनंद की बात है कि दुर्योधन और उसके मंत्री पुरोचन की अभिलाषा पूरी नहीं हुई ।

आप सब लोग लाक्षागृह के अग्नि से बच निकले । तुम्हारे सारे संकल्प पूरे हो जाएं । तुम्हारा प्रयास निश्चित सार्थक हो जाएं । अब हम ज्यादा समय नहीं रुकेंगे।  अब हम यहां से चलेंगे।” युधिष्ठिर की अनुमति से भगवान श्रीकृष्ण और बलदेव उसी समय वहां से चले गए ।

       माता कुंती ने द्रौपदी से कहा, “अब आप यह भिक्षान्न में से देवताओं के भाग निकालो । ब्राह्मणों को  आशीष के साथ भिक्षा दो । फिर बचे हुए अन्न से आधा भीमसेन को दो । बाकी  बचे अन्न के छे भाग कर के हम सब खा लेते है ।”  तुरंत द्रौपदी ने अपने सासु मां की आज्ञा पर, कोई भी प्रकार की शंका किए बिना, प्रसन्नतापूर्वक उसका पालन किया । भोजन के बाद सब के लिए चादर बिछाई। सबने अपने अपने  मृग चर्म बिछाए और जमीन पर सो गए।

       द्रौपदी यह सब देख रही थी। कुन्ती ने अलग से बुलाकर उनको पूछा, “इस तरह का फैसला क्या आपको कबूल है? ” तब द्रौपदी ने कहा ,“ मैं आप के घर में आई हूं । यहाँ का जो कुछ भी है वह सब आप की वजह से है । जो आप ठीक समझो वैसा मैं करूँगी । आपकी और सबसे बड़े युधिष्ठिर की आज्ञा मानूंगी ।”

         युधिष्ठिर ने अर्जुन को बुलाके कहा, “मेरे भाई, तुमने धर्म और मर्यादा के हिसाब से द्रौपदी को जीता है। अब विधिवत् अग्नि की साक्षी से द्रौपदी का पाणि-ग्रहण करो ।”

          तब अर्जुन बोला, “भाई मुझे इस कार्य में आगे मत बढाओ। हम लोग सत्पुरुषों की तरह धर्म का आचरण करेंगे । पहले आप फिर भीम, फिर मैं उससे विवाह करूँगा । तत् पश्चात, मेरे छोटे भाई सहदेव और नकुल का विवाह होगा । द्रौपदी को मेरी यह विनती है के तुम्हारी बुद्धि के हिसाब से धर्म, यश और सभी का हित के बारे में जो अच्छी चीज़ होगी, जो उचित रहेगा उसी को हम अमल करें ।”

इस तरह सर्व की सहमति से कृष्णा पांच पांडु पुत्रों की पत्नी बनी, उसी समय पांचो पांडवों की लग्न विधि पुरी हो गई । द्रौपदी का स्वयंवर इस तरह संपऩ्न हुआ ।

धृष्टद्युम्न के मन में बड़ा युद्ध

             धृष्टद्युम्न के मन में बड़ा युद्ध चल रहा था। और वह पांडवों के पीछे पीछे गया। अपनी उत्कंठा पूरी करने के लिए, के मेरी बहन किसके घर ब्याही है?  यह कौन ब्राह्मण हैं जो इतना पराक्रम कर गया और जब वह  कुंभार की झोपड़ी के पास पहुंचे तो उनको बहुत बड़ा आश्चर्य हुआ ।

ओर उनको शंका थी, उसके मन में उन्होंने तय कर लिया कि यकीनन यह लोग ब्राह्मण नहीं शायद क्षत्रिय है और बड़े वीर और कौशल युक्त है । मुझे लगता है कि यह पांडव है और उनके साथ में एक तेजस्वी देवी भी है । मुझे लगता है कि वह उनकी माता कुंती है औरलक्ष्यभेद करने वाला ब्राह्मण, ब्राह्मण नहीं है ।बल्कि पांडु पुत्र अर्जुन है ।

   वह पांडवों के सब काम बड़ी सावधानी और बारीकी से देख रहा था। उसने द्रुपद राजा को जाकर सारी बातें बताई।  उसने कहा, “द्रौपदी को युधिष्ठिर ने पांचों पांडव के साथ विवाह करने की आज्ञा दी ।” द्रौपदी के साथ पांडवो के विवाह की बात सुनकर पांचाल राज को बड़ा आश्चर्य हुआ।

    यह बात सुनकर द्रुपद राजने कुंती और पांडु पुत्र को अपने राजमहल में बुलाया। उनके साथ में द्रौपदी भी आई । युधिष्ठिर ने द्रुपद राज को अपना परिचय कराया।  सब सुनकर द्रुपद के मन को ठंडक पहुंची । उनको बहुत आनंद हुआ । उनसे सोचा-  अब मेरी इच्छा पूरी होगी। महाबली अर्जुन मेरा जमाई है। इसलिए अब मुझे द्रोणाचार्य के साथ की शत्रुता के विषय में कोई चिंता नहीं । और उन्होंने संतोष की सांस ली ।

युधिष्ठिर ने उनको बताया के द्रुपद राज हम पांच भाइयों ने द्रौपदी के साथ विवाह करने का निश्चय कीया है। उन्होंने इस बात का जोर से विरोध किया।

“यह कैसा अन्याय है? ऐसा विचार कोई धर्म संगत नहीं है। दुनिया की रीत से यह पूरा अलग है। ऐसा पागल खयाल तुम लोगों के मन में आया कैसे?” द्रुपद राजने कहा।

तब युधिष्ठिर ने द्रुपद से कहा, “महाराज, मुझे क्षमा करें। हमारा यह रिवाज है कि जो कोई भिक्षा बाहर से लेके आते है ,उसको हम सब आपस में बांट लेते है । कितने भी घोर विपत्ति आए, फिर भी हमने इस रिवाज को पाला है। हमारी माता की यह आज्ञा है । हम उसको टाल नहीं सकते । इसके लिए आप हमारे विवाह की व्यवस्था कीजिए।”

द्रुपद ने कहा, “ कुन्ती जी, धृष्टद्युम्न और द्रौपदी दुलारी अगर यह बात को मानते है तो हम ऐसा कर सकते है। अगर द्रौपदी इस बात को हाँ बोलती है तो यह हो सकता है। ”

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