3 Important Things About Ego अहंकार की बहुत अधिक मात्रा हानिकारक है

3 Important Things About Ego अहंकार की बहुत अधिक मात्रा हानिकारक है

मेघावी के पतन और मृत्यु की कहानी

अहंकार (ego) की बहुत अधिक मात्रा हानिकारक है यह बहुत पुराने समय की बात है। बालतिही नामक एक ऋषि थे। उनका  नाम चारों तरफ था । ऋषि का एक पुत्र था, लेकिन उनकी कमनसीबी के यह बहुत ही कम उम्र में गुजर गया। पुत्र के मृत्यु से ऋषि को बड़ा दुख हुआ। अब मुझे चाहिए कि मैं  तप करूं और ऐसा वरदान भगवान से प्राप्त करू कि मुझे एक अमर पुत्र मिल जाए ।वह तपस्या में बैठे।

जब घोर तपस्या का अंत आया तब भगवान शिव प्रकट हुए और उनसे बोले, “हे ऋषि तुमको एक अमर पुत्र चाहिए। लेकिन, मनुष्य जाति में वह किसी को नहीं मिल सकता। मनुष्य की आयुर्मान उसकी जन्म के पहले से ही तय हो चुका होता है। तो तुम तुम्हारे भावी पुत्र  के लिए आयुष्य की कोई सीमा तय करो। वह उसी सीमा तक जिंदा रहेगा।” 

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                     ऋषि ने बहुत सोचा और फिर उत्तर दिया, “हे महादेव आप मुझे कह रहे हो कि मेरे पुत्र के उम्र की मैं सीमा बांधू ।तो ऐसा करो कि सामने जो पहाड़ है वह जब तक वहां से नही हिलता, तब तक मेरा पुत्र जीवंत रहे।” भगवान ने कहा, “तथास्तु” और भगवान चले गए। 

मेघावीके पतन की शुरुआत। अहंकार (ego) की बहुत अधिक मात्रा हानिकारक है – कहानी

                 कुछ काल बाद, ऋषि को एक पुत्र हुआ। उसका नाम मेघावी रखा गया। जैसे जैसे मेघावी बड़ा होता गया उसी तरह उसका अभिमान बढ़ता गया। क्योंकि उसके पिता ने उसको बताया था कि जब तक वह पहाड है, तब तक वह मर नहीं सकता। उसको कोई कुछ नहीं कर सकता। वह यह समझने लगा कि मैं पहाड़ की तरह अटल हूं। मुझे मौत का डर क्यों होना चाहिए। यह सोच के वह बहुत अभिमान करता था ।और सभी लोगों को तंग करता था। किसी की बात सुनता ही नहीं था। बड़ा कु्र और लोगों के लिए आफत करने वाला बन गया। 

एक महात्मा शख्स था। उसने उसका अपमान किया।यह अपमान की वजह से महात्मा को बड़ा गुस्सा (ego) आया और उसने श्राप दिया, “तू अभी जल के भस्म हो जा।” लेकिन उसको तो कुछ हुआ नहीं  वह वही खड़ा रह गया क्योंकि भगवान ने उसको आशीर्वाद दिया था। महात्मा विचार में पड़ गए। उसके आश्चर्य की सीमा नही रही।

         तब  उनको याद आया और किसी ने उसको बताया कि यह मेघावी तो एक तपस्या का प्रसाद है। उसके पिता को एक वरदान मिला है इसीलिए मेघावी भी उस पहाड की तरह अचल है ।तुरंत उन्होंने एक जंगली भैंसे का रूप लिया। फिर उस भैंसे ने जोर से उस पहाड़ को सिंग से धक्का मारा। तब वह पहाड टूट गया और मेघावी की काया वहीं की वहीं ढेर हो गई। और वह मर गया।

गहराई से सोचें और पाएं कि आपका अहंकार(ego) आपके लिए क्या कर रहा है। क्या यह आपको बुरे कर्म की ओर खींच रहा है? कई लोग अपने वास्तविक स्व और अपने अहंकार या दूसरे मन के बीच अंतर नहीं कर सकते हैं जो उन्हें भटकाता है। अपने वास्तविक आत्म को खोजने के लिए स्वयं को गहराई से देखना आवश्यक है।

यदि आप इसे पा लेते हैं तो आप महसूस करेंगे कि आप अपने और दूसरों के बारे में जो आप सोचते हैं, उससे अलग व्यक्ति हैं। तो एक बार जब संकट के दौरान कुछ आत्मनिरीक्षण किया जाता है – तो हो सकता है कि आप या आपके अहंकार ने इसकी पहल की हो।क्या आप अहंकार (ego) के रूप में ज्ञात अंधेरे के इस रसातल में गिर गए हैं? अब खुद पर नियंत्रण रखें।

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This Post Has One Comment

  1. Rohit Valmiki

    Nice Blog very inspiring devotional story and very good massage to public very nice sirji keep it up and guidance to everyone Who didn’t know about this devotional story.. God bless you

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