Devvrat की जन्म कथा गंगाजी सुनाती है
शांतनु ने बोला, “ जटपट बोलिए मेरे से यह कुतूहल सहा नहीं जाता।” गंगा ने कहा, “ राजेंद्र सुनिए एक बार आठ वसु अपनी पत्नी के साथ आनंद विहार कर रहे थे। यह जो पहाड़ देख रहे हो उसके सामने और उसकी वन में वह खेल रहे थे। बहुत ही सुंदर दृश्य था और रुत बड़ी सुहानी थी और लुभावनी थी। वसु उनकी पत्नियों के साथ मस्ती से घूम रहे थे।
अचानक वहां पर महर्षि वशिष्ठ की गाय नंदिनी घास चरते चरते पहुंच गई। उसके साथ उसका एक छोटा सा बछरा भी था। और नंदिनी तो आपको पता है दैवी थी। उसको देखकर सब लोग आकर्षित हो गए और वसु पत्नियां उनको देखकर बड़ी मोहित हो गई ।और उस पर उनमुक्त होकर सब लोग गाय का बखान करने लगे। उसकी स्तुति करने लगे और आनंद से वह सारी नाचने लगी। लेकिन एक वसु पत्नी तो उससे भी आगे निकल गई।
उनका मन ललचा गया। एक वसु – प्रभास की पत्नी ने उससे कहा,“यह गाय को पकड़ लो। ”
गंगा ने थोड़ी देर करी और आगे बोली, प्रभास यह सुन कर हंसने लगा। उसने कहा, “प्रिय तुम क्या बोलती हो? तुम भूल रही हो हम सब तो देवता है। हमें दूध की क्या जरूरत है? तुमने ऐसी जिद नहीं करनी चाहिए। तुम्हें एक गाय की क्या जरूरत?”
उसकी प्रियतम ने कहा, “मुझे तो यह गाय चाहिए ही चाहिए। कुछ भी करो इस गाय को पकड़कर मेरे पास ले आओ” उसके पति ने उसे कहा “तुम जानती नहीं हो यह नंदीनी तो मुनी वशिष्ठ की अति प्रिय है उसके हमेशा पास रहती है उसी के दूध से तो आदमी चिरंजीवी बनता है।”
“हमें तो कोई अमर रहने की जरूरत नहीं है। हम मृत्यु रहित है हमें गाय का क्या काम है? जानबूझ कर क्यों ऋषी का गुस्सा अपने सर पर ले रहे हो?” लेकिन जैसे जैसे उसका पति उसको ना कहते गया, वैसे सुप्रिया की जिद्द बढ़ती गई। devvrat की जन्म कथा से इसका क्या संबंध?
वसुने उसको बहुत समझाया ,लेकिन उसकी प्रियतमा ने बात मानी नहीं। उसकी तो हठ्ठ चालू ही रह गई, जाओ गाय ले आओ। वशिष्ठ तो आश्रम में है इसीलिए तो यह गाय यहां पर आई है ।तो वह वापस आए, उसके पहले यह नंदिनी को उठाकर लेकर आओ। ज्यादा सोचो मत।” इस तरह वसुपत्नी ने devvrat के जन्म कथाकी नीव डाली।
प्रभास अपनी प्रियतमा के आग्रह से विवश हो गया ।और पत्नी ने उसे एक अंतिम तीर फेंका। “तुम मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते? मेरे प्रियतम।” जो हमेशा से पत्नी अपने पति को कहती है। और वसु तैयार हो गए।
सात वसु की मदद लेकर उन्होंने यह नंदिनी को उठाया और लेकर गए। नंदिनी क्या गई, आश्रम का तेज चला गया।जब वशिष्ठ वापस आए, नंदिनी को देखा नहीं और उसके बच्चे को भी नहीं देखा, तो वह जंगल के कोने-कोने में उसको ढूंढने चले गए। devvrat की जन्म कथा आगे कहते है
कहीं पर उसको नंदीनी नहीं मिली इसलिए वशिष्ठ ध्यान में बैठे और उनको अपने ज्ञान नेत्र से पता चला कि यह कारस्थान वसुओं ने किया हुआ है। वासु की कारस्थान से महर्षि को बड़ा गुस्सा आया इतने बड़े देव होकर, एक सामान्य मानवी की तरह लालच में आकर गाय की चोरी की। और महर्षि ने उन को श्राप दिया – “जाओ तुम आठ मनुष्य का अवतार पाओगे। क्योंकि तुम ने मनुष्य जैसा व्यवहार किया है इसीलिए तुम मनुष्य बन के धरती पर जाओगे।”
गंगा का मधुर स्वर यहां पे अटक गया। शांतनु यह बात से सोचने लगा और उनसे पूछा कि सुंदरी उसके बाद में क्या हुआ। गंगा ने कहा , “ राजेश्वर यह आठ वसु वशिष्ठ का तपोबल जानते थे ।वशिष्ठ अगर कोई श्राप देते हैं तो उनको डर लग रहा था। वह सब लड़खड़ाते कदम से वशिष्ठके पास पहुंचे और उनको खुश करने की कोशिश करने लगे ।वशिष्ठ ने जवाब दिया मेरा शॉप कभी बेकार नहीं जाता तुमको मृत्यु लोक में जन्म तो लेना ही पड़ेगा। फिर भी यह प्रभास को छोड़कर बाकी के सात वसुओं के लिए मैं एक मर्यादा दे देता हूं। यह सातों वसु मनुष्य के रूप में जन्म लेंगे उसके बाद तुरंत मुक्त हो जाएंगे ।”
“प्रभास ने तो यह पूरा काम किया था और अपनी पत्नी से कहकर नंदिनी को चुराया था। और मनुष्य की तरह व्यवहार किया था इसीलिए उसको मनुष्य लोक में लंबे समय तक रहना पड़ेगा। लेकिन जब तक वह मनुष्य लोग में रहेगा तब तक उसका यश दसों दिशाओं में फैलेगा और उसकी कहानी बहुत पीढ़ियों तक लोग सुनते रहेंगे। अब जा सकते हो”। मुनि का क्रोध शांत हो गया और फिर से वह तपस्या में बैठ गए। शांतनु ने एकदम पूछा,“लेकिन वसुओं के बारे में तो तुमने कुछ आगे बताया ही नहीं।” ऐसे घटी प्रभाससे devvrat की जन्म कथा। आगेकी कहानी पढें-
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