Drona and Drupada की मैत्री और दुश्मनीकी 1 अनोखी कहानी

Drona and Drupada की मैत्री और दुश्मनीकी 1 अनोखी कहानी

1. Drona and Drupada की मैत्री

Drona and Drupada मैत्री कैसे हुई ? द्रोण और पांचाल नरेश द्रुपद धनुष विद्या सीखने के लिए भारद्वाज मुनि के आश्रम में रहने लगे । ऐसे तो द्रोण ने अपने पिता से वेद- वेदांग का बड़ा गहरा अध्ययन किया था । लेकिन अब उनको धनुष विद्या में माहिर होने की इच्छा थी।  

Drona and Drupada की मैत्री गुरूके आश्रममे हुई । इसी दौरान, Drona and Drupada एकदम गहरे मित्र बन गए । एक दिन उत्साह से बड़े जोश में आकर द्रुपद कुमार द्रोण से कहने लगे,“जब मैं पांचाल देश का राजा बनूंगा, तो मैं तुम्हें अपना आधा राज्य दूंगा और यह मेरा वचन समझना । केवल हमारी मित्रता के खातिर मैंने यह बात तुमसे कही है।”

जब विद्याभ्यास के अंत में समावर्तन के समय ,दोनों मित्र एक दूसरे को गले लगाकर अलग हुए । जाते वक्त द्रोण के अंतर मन में द्रुपद ने जो उसको वादा किया था, उसकी याद आई । लेकिन वह कुछ बोला नहीं। उसको अपनी मैत्री में और अपने मित्रों में बड़ी गहरी श्रद्धा थी ।

द्रोण का जीवन क्रम शुरू हुआ । द्रोण ने बहुत तप किया और पिता की आज्ञा के हिसाब से कृपाचार्य की बहन के साथ उसने विवाह किया । उनका एक पुत्र हुआ, जिसका नाम अश्वत्थामा रखा गया।

वैसे तो द्रोण गरीब ब्राह्मण थे । लेकिन उनको लगा कि कुछ सुख-साधन हो, तो मैं मेरे परिवार को अच्छी तरह से सुख चैन से रख सकता हूं। उनको समाचार मिला भगवान परशुराम अपनी सारी संपत्ति ब्राह्मणों को दे रहे है । तो फिर वह दौड़ते दौड़ते परशुराम के पास गए ।

2. Drona and Drupada मैत्री – द्रोणकी पहली निराशा

लेकिन क्या हुआ?  भार्गव ने द्रोण को देखकर कहा, “पधारो, देखो मेरे पास जो संपत्ति थी वह तो मैंने दान कर दी । अब मेरे पास एक अस्त्र विद्या के सिवा कुछ नहीं बचा है और दूसरी है मेरी दोनों बेटियां है । कहो मैं क्या करूं?” द्रोण की आशा निराशा में बदल गई । कुछ पल सोचकर द्रोण ने कहा, “मुनिवर, मुझे आप अस्त्रविद्या का ज्ञान दिजिए।”

भगवान परशुराम ने अपना वचन निभाते हुए द्रोण को अस्त्रविद्या का प्रयोग करना, उपसंहार करना और इसके सारे राझ समझाए । सारी कला उनको सिखाई। लेकिन उससे द्रोण की गरीबी नहीं गई।

एक दिन अश्वत्थामा अपने दोस्तों के साथ खेल रहा था । तो बाकी बच्चों की बातें सुनकर उसको पता चला कि यह सब लोग दूध पीते हैं । लेकिन उनके घर में दूध नहीं होता था। इसीलिए अश्वत्थामा दुष्का खाते-खाते द्रोणाचार्य के पास आए और उनके पिताजी से कहा,“ बापू मुझे दूध तो पिलाओ ।”   

3. Drona and Drupada मैत्री – द्रोणकी दुसरी निराशा

Drona and Drupada
Drona and DrupadaDrona and Drupadaद्रोण और द्रुपदकी मैत्री द्रोणका अपमान

लेकिन दूध कहां से लाए ? द्रोणाचार्य के पास इतने पैसे नहीं थे। संपत्ति भी नहीं थी, कि वह कुछ और कर सके । दूध की बात तो एक तरफ, तब बालक को दूध के लिए तडपता देखकर पिता का दिल एकदम पिघल गया।

द्रोण दूध ढूंढने इधर उधर बहुत जगह घुमे, लेकिन कहीं भी उनको दूध नहीं मिला । इस तरफ अश्वत्थामा के मित्र उसका मजाक उड़ाने लगे । उसको एक पानी भरे कटोरे में आटा घोलकर दिया । और कहा कि यह तो दूध है । तब अश्वत्थामा दूध मानकर पी गया ।

लेकिन उनके मित्र तो उसका मजाक उडा रहे थे । उसने कहा “देखो अश्वत्थामा, तुम्हें यह भी पता नहीं है, दूध क्या होता है ? हमने तो पानी में आटा डालकर तुमको दूध करके पिला दिया। तुम को पता भी नहीं चला । अगर तुमने कभी पिया होता तो मालूम पड़ता।” फिर वह तालियां मारते हुए, उसकी मजाक उड़ाते हुए, नाचने लगे ।

आचार्य को लगा इस तरह की भयंकर गरीबी और मेरे छोटे से बच्चे की इतनी बड़ी मजाक ? कुछ नहीं तो मेरे पास एक गाय तो होनी चाहिए । लेकिन गाय कहां से मिलेगी ?

उनका एक ही मित्र था द्रुपद । उसकी उनको याद आई । गुरुकुल में उसने कहा था कि अगर मैं राजा बन गया तो मैं अपना राज्य तुम्हें दे दूंगा। यह वचन के बारे में सोचकर आचार्य के मन में एक कल्पना आई । मैं उसके पास जाऊंगा और सहायता ले लूंगा ।

आचार्य द्रोण द्रुपद के पास गए और बोले, “मुझे तुम को याद दिलाना पड़ेगा मैं द्रोण हूं । तुम्हारे गुरुकुल का मित्र हूं और तुम्हारा गुरु का याद करो । तुमने मुझे एक वचन दिया था और अभी मैं बहुत बड़े संकट में हूं । मेरे पुत्र को दूध तक पीने को नहीं मिलता है । और मेरी गरीबी की वजह से उसकी मजाक उड़ाई जा रही है ।”

सिंहासन पर बैठे हुए द्रुपद यह सुन के द्रोण की ओर देखने लगे । इसीलिए आचार्य ने कहा, “संभव है कि तुम्हें हमारी याद ना रही हो । लेकिन तुमने मुझे कहा था कि मुझे जब राज्य मिलेगा तो आधा राज्य में तुमको दूंगा । तो है राजेंद्र मुझे कोई भी राजपाल नहीं चाहिए । मुझे थोड़ा सा धन दे दो । इससे मेरा गृहस्थाश्रम सरल होगा ।”

“अरे भिखारी, तेरे साथ मेरी मित्रता कैसे हो सकती है? तुम तो अशोभनीय बात कर रहे हो । ऐसे भी अगर कोई मैत्री होगी तो वह भूल जाओ । बचपन की मैत्री को क्या दोस्ती कहते हैं ? ऐसी दोस्ती का दावा करके तुम क्या साबित करना चाहते हो? ब्राह्मण, पंडित और मुर्ख की मित्रता नहीं होती । और इसी तरह धनवान और निष्कांचन गरीब इन दोनों की मित्रता नहीं होती । मेरे पास से कुछ भी आशा मत रखना चलते बनो ।”

4. Drona and Drupada मैत्री मे – द्रोणकी और एक तीसरी निराशा ।

और विद्या का परम धन,धन लक्ष्मी से धनवान अपमानित हुआ । सैनिको के हाथ से उसका अपमान हुआ ।

द्रुपद का यह वचन और बातें आचार्य के मन को चुभने लगी । “बचपन की क्या मैत्री होती है? तू एक भिखारी और मुझे, राजा को मित्र कह रहा है? राजा का मित्र कोई राजा ही हो सकता है। भिखारी कहां से हो सकता है ?”

द्रोण साहसी और ज्ञानी थे । यह बातें सुनकर उनके मन में बहुत बड़ी कटुता आई । विद्या का परम मालिक धनवान आचार्य द्रोण को इस तरह लक्ष्मी से धनवान मदमस्त द्रुपद के हाथों से अपमानित होना पडा । द्रोण और द्रुपदकी मैत्री मे बडी दरार पडी ।

द्रुपद के यह वचन बार-बार उनके दिल को काटने लगे। “बचपन की क्या मैत्री हो सकती है? तू भिखारी और मैं सिंहासन- पति मित्र हो सकते हैं ? राजा का मित्र कोई राजा का मित्र कोई राज भी होना चाहिए, भिखारी कहां से हो ?” यह सब बातें सुनकर और दुखी होकर, निकल पड़े । लेकिन उनको घर जाने का मन नहीं किया। क्या मुंह दिखाए अपने परिवार को ?

यहाँ इस कथा का भाग 2 पढे : आचार्य द्रोणका प्रतिशोध और उदारता 2 विरोधाभास

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