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सुई

क्या है सुई ? दरअसल …. कपड़ों को पेच (Patch) लगानेवाली वह छोटीसी चीज जानती है की कैसे वो कुछ लोगों की जिंदगी में भी पेच (Patch) लगाती है।

कपड़ों को जोड़ने -सीने वाली छोटी सी सुई कभी -कभी तो लोगों के जीवन भी सी लेती है।वह छोटी सी चमकीली सुई लोगों के जीवन में भी उजाला लेकर आती है।। और सबसे महत्वपूर्ण बात…. उस छोटी सी सुई ने जंगली अवस्था में रहने वाले मनुष्य को उचित वस्त्र पहनाकर और अपना ज्ञान देकर सभ्यता और गरिमा का भाव दिया है! अब आप ही बताइए,  इससे बड़ी मानव सेवा और क्या हो सकती है?!

क्या आपके घर में सुई है ?!

आखिरी बार आपने सुई कब देखी थी?!

क्या आप सुई का उपयोग करना जानते हैं ?!

आखिरी बार आपने कब सुई का इस्तेमाल किया था?!

पहले वस्त्र और तबकी सुई

“आवश्यकता ही आविष्कार का जन्मदात्री है” बस उस नियम को सार्थक करते हुए …सभ्यता की राह पर चल रहे उस जमाने का इंसान अभी भी पेड़ की पतली छाल के वल्कल और पत्ते पहने हुए था…तब इसकी आवश्यकता वल्कल वस्त्र बनाने तक ही सीमित थी, तो अपने स्वयं के अनुभव और अवलोकन से मनुष्य ने मेपल के पत्ते की सुई और धागे से वल्कल सिलना शुरू कर दिया।

युगों पूर्व अमेरिका के मूल निवासी मेपल के पत्तों को लंबे समय तक पानी में भिगोकर सुखाते थे और फिर उन्हें सुई और धागे दोनों को एक साथ मील जाते थे! उस समय के मनुष्य की आवश्यकताओं के लिए वह सुई और धागे पर्याप्त थे। लेकिन पुरातत्वविदों को इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिला है। पर इतिहासकारोंने और शोधकर्ताओंने मनुष्य के इस नए आविष्कार को नोट किया है।

कपड़ों का आविष्कार और सुई

पर बिना कपड़े की सुई से क्या फायदा? कपड़ों का आविष्कार लगभग 1,00,000 वर्ष पूर्व माना जाता है। वैज्ञानिक अभी भी बहस करते हैं इंसानों ने कब कपड़े पहनना शुरू किया। मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर इवोल्यूशनरी एंथ्रोपोलॉजी में मानवविज्ञानी राल्फ किटलर, मैनफ्रेड कैसर और मार्क स्टोनकिंग ने एक अध्ययन में मानव शरीर की उत्पत्ति का आकलन करते हुए बताया के कपड़े की उत्पत्ति 107,000 साल पहले हुई थी।

हालांकि, अन्य शोधकर्ताओं के अनुसार, यह अनुमान है कि कपड़े और कपड़ों की उत्पत्ति 5,40,000 साल पहले हुई थी। दोनों अनुमानों के बीच का अंतर केवल लगभग 450,000 वर्षों का है ! प्रागैतिहासिक चीजों की बात करें तो यह अंतर बहुत कम है! पर सच तो यह है कि कपड़ों की उत्पत्ति का रहस्य आज भी अनसुलझा है।

माना जाता है कि मनुष्य ने लगभग 70000 साल पहले सुई का आविष्कार किया था। उन दिनों की सुइयां पत्थर, लकड़ी, जानवरों की हड्डियों, जानवरों के सींग या हाथी दांत से बनाई जाती थीं। और माना जाता है कि लोहे की सुई का आविष्कार 14वीं सदी की शुरुआत में हुआ था। सुई को एक सिरा नुकीला और दूसरे सिरे पर थ्रेडिंग हुक के साथ बनाया गया था। लेकिन इस सुई से हाथ से कपड़े सिलते समय अक्सर सूई से धागा फिसल जाता है…

  लेकिन 15वीं शताब्दी में सुई बनाने में बदलाव आया और हुक को छेद में बदल दिया गया…और जिस रूप में हम आज भी सुई देखते हैं वह यह है कि सुई का एक सिरा नुकीला होता है जबकि दूसरे सिरे में धागा पार करने के लिए एक छोटा सा छेद होता है।

सुई किस धातु की और कभी बनी ?

दूसरी शताब्दी के प्रारम्भ में कभी-कभी सुई को ताँबे और काँसे की बना कर प्रयोग में लाई जाती थी, लेकिन सामान्य वातावरण का इन दोनों धातुओं की सुइयों पर मौसम का बहुत प्रभाव पड़ता था..जिससे दोनों धातु की सुइयों को जंक लग जाता था, इसलिए उन दोनों सुइयों की उम्र बहोत छोटी हो कर रहे गई ! लोहे की सुइयां जिसे भी अक्सर जंग लग जाता है I  इसलिए स्टेनलेस स्टील की सुइयों का आविष्कार किया गया।

कहा जाता है कि दसवीं शताब्दी की शुरुआत में चीन ने स्टेनलेस स्टील का विकास किया और इससे सुईयां बनाना शुरू किया। स्टेनलेस स्टील की सुइयों का निर्माण बाद में स्पेन, जर्मनी और फ्रांस में किया गया। समय बीतने के साथ मनुष्य ने अपनी आवश्यकता और उपयोग के अनुसार अलग-अलग धातु की सुइयां बनाना शुरू कर दिया। जैसे सिलाई मशीन पर इस्तेमाल की जाने वाली सुई हाई कार्बन स्टील वायर, निकेल या 18 कैरेट गोल्ड प्लेटेड सुई से बनी होती है। एम्ब्रॉयडरी की सुइयों को बनाते समय दो भाग प्लैटिनम और एक भाग टाइटेनियम का उपयोग किया जाता है।

इन्जेक्शन की सुई :

आयरिश डॉक्टर फ्रांसिस रैंड ने 1844 में इंजेक्शन सुई का आविष्कार किया…और इसके साथ ही चिकित्सा और चिकित्साजगत मे क्रांति आ गई। इंजेक्शन सुई में नीचे की तरफ एक छेद होता है और इंजेक्शन में भरी हुई दवा के गुजरने के लिए ऊपर एक उपयुक्त कैविटी होती है। यह सुई इतनी पतली थी कि मानव शरीर की त्वचा में छेद कर सकती थी। कुछ विशेष प्रयोजनों के लिए उपयोग की जाने वाली चिकित्सा सीरिंज की सुइयां भी कांच या प्लास्टिक की बनी होती हैं।

सुई के अर्थ –

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