कौशिक मुनि की Satya Dharm की खोज: Part 1

कौशिक मुनि की Satya Dharm की खोज: Part 1

कौशिक मुनि की Satya Dharm की खोज: कहानी एक अभिमानी मुनिकी है। व्यास: स्त्रियां कितनी सहनशील होती है । उनके सतीत्व की शक्ति कितनी आश्चर्यजनक है । दुनिया में स्त्री क्या नहीं कर सकती? बालक को जन्म देने के पहले और जन्म देने के बाद कितने सारे दुख सहती हैं। अपनी जानको बाजी पर लगाकर बालकों को वह बचाती है। यह श्रद्धा, प्रेम और त्याग की अद्भुत मूर्ति है।

धर्मराज युधिष्ठिर बारह साल वनवास में रहे थे। वहां पर मार्कंडेय मुनि आते है। कुंती नंदन ने उन्हें विनंती की, इसीलिए उसने यह कथा बताई ।  कौशिक एक तपस्वी ब्राह्मण था और ब्रह्मचारी। एक बार वह एक पेड़ की छांव में बैठकर वेद का अभ्यास कर रहा था। अचानक उसके माथे पर एक चीज पड़ी ।

            देखा तो एक पंछी ने उस पर उपसर्ग किया है। तुरंत उसको क्रोध आ गया और डाली पर बैठे पंछी को देखा । तप की ताकत से उत्पन्न क्रोधग्नी से वह पंछी जलकर मर गया। और पेड के नीचे गिर गया।

कौशिक मुनि ने सोचा यह मेरे ब्रम्हचर्य और ब्रम्हतेज का प्रताप है। लेकिन पंछी के मरने के बाद उसको बड़ा दुख हुआ। उसको पछतावा होने लगा ।अरेरे ! मैंने एक निर्दोष पंछी को इतनी छोटी सी बात के लिए मार दिया। क्रोध में आकर मैंने बुरी भावना की और इसी भावना के कारण यह पंखी की जान गई। अब क्या हो सकता है? कुछ नहीं। वह बडे शोकमे पड गया।

     लेकिन ,अब तो मेरा भिक्षा लेने का समय हो गया हैं ।चलो चलते हैं। कौशिक भिक्षा मांगने के लिए आगे निकला । एक घर के पास आकर खड़ा रहा।घर के अंदर पत्नी कुछ बर्तन साफ कर रही थी । ब्रह्मचारी को उसने देखा।

कौशिक को लगा कोई बात नहीं, जब यह बर्तन मांज लेगी तब मुझे भिक्षा देगी। लेकिन, उतने में बाहर से उसका पति आ गया और आकर, अपनी पत्नी से कहने लगा, मुझे बहुत भूख लगी है। यह सुनकर,पत्नी ने सारे बर्तन एक तरफ रख दिए और फटाफट पति के लिए भोजन थाली में परोस पर लेकर आई। उनके लिए आसन लगाया और बिठाकर भोजन और पानी दिया। जैसे ही पति बैठे उनको पंखे से हवा डालने लगी।थोड़ी देर हो गई और पति खाना खा कर उठा।

कौशिक मुनि की Satya Dharm की खोज:

कौशिक मुनि सत्य धर्म की खोज

जैसे पति भोजन खाकर चला गया, उसके बाद पत्नी उठकर कौशिक के लिए भिक्षा लेकर आंगन में आई। वह बाहर निकली। तब दरवाजे पर कौशिक को खड़ा पाया। कौशिक के मन में बहुत विचार आते है, तथा उसको गुस्सा भी आता है। थोड़ा नाराज भी होता है।

उसने बड़े विनय से कहा,“थोड़ी देर हो गई । आपको खड़ा रहना पड़ा। मुझे क्षमा कर दो।”                      लेकिन, कौशिकका घमंड और क्रोध अभी भी नहीं गया था। उसने बड़ी जोरो से कहा,“बहन जी मुझे अभी और घर भी जाना है। इतने समय से तुम मुझे यहां खड़ा रख कर अंदर अपना काम करने लगी, यह सही नहीं था।”

वह स्त्री कहती है, “हां ब्राह्मण, बहुत देर कर दी। मैं अपने पति की सेवा में लगी थी । इसीलिए देर हो गई। मुझे क्षमा कर देना ।”

बहुत बड़ा व्रत वाला और नकली पवित्रता का प्रतीक, कौशिक का घमंड जाग उठा। वह बोला ,“ यह चीज मुझे कुबूल है स्त्रियों के लिए अपने पति की सेवा करना उनका धर्म है, उसके साथ में उसने ब्राह्मण का भी आदर करना चाहिए। मुझे लगता है तुझे तेरा सती धर्म का बहुत ही अभिमान हो गया है।”

साध्वी ने बड़ी नम्रता से कहा , “मुझसे नाराज ना होइए महाराज, पति सेवा में लगी पत्नी पर गुस्सा करना ठीक नहीं है । ”

कौशिक ने गुस्से से कहा, “ऐसा है मुझे उपदेश देने निकली हो क्या? ” और उसकी भवे उंची चढ़ गई , और क्रोध की बरसात होने लगी।

लेकिन वह सतीत्व की मूर्ति साध्वी ने कहा, “क्षमा करो महाराज, मैं कोई जंगली पक्षी नहीं । मुझे भूल से भी  विवश और कमजोर पक्षी मत समझना। आपका क्रोध मेरी जैसी सती का कुछ नहीं बिगाड़ सकती ।”

“क्षमा करो महाराज मैं जंगली पक्षी नहीं हूं”, इस वचन से कौशिक का पूरा गर्व हवा हो गया। आश्चर्य से उसने सोचा, इतनी दूर जंगल में एक पंछी पर मैंने क्रोध करके उसको जला दिया, यह साध्वीको यहां बैठ कर कैसे मालूम हुआ?”

वह हाथ जोड़कर उनको पूछने को आगे बढ़ता है, तभी साध्वी ने कहा, “महात्मा जी, आपको अभी तक धर्म का सही अर्थ समझा नहीं है । सही रहस्य मिला नहीं । तुम इतना भी नहीं समझते कि क्रोध इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है। यह शत्रु अपने अंदर रहता है और पूरे जीवन को का विनाश करता है।मेरा अपराध तुम्हें माफ करना चाहिए।”

कौशिक बड़ा विनम्र बन गया। कौशिक ने कहा,“देवी तुमने मेरी आंखें खोल दी। तुमने मुझे धर्म का सही मतलब और रहस्य समझाया। तुमने मेरा बहुत कल्याण किया है ।मुझे तुमने बहुत कड़वी बातें कही है, लेकिन मेरे लिए यह अमृत है। मुझे आशीर्वाद दो कि मुझे धर्म का रहस्य मिले।”

स्त्रीने ने उसे कहा कि “धर्म क्या अगर सही रहस्य जानना चाहते हो, तो वहां पर मिथिला नगरी में एक पारधी रहता है, वह आपको धर्म का सही रहस्य समझाएगा। आपको  सही उपदेश देगा।”और कौशिक मुनि चल पड़ा मिथिला नगरी की ओर गुरुसे धर्मज्ञान पाने  ।

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