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 1 भीमसेन की अगली कहानी , Bakasur का वध 1 ।

Bakasur का वध : पांचों भाई जो भी ले कर आते थे, वह सब माता को दे देते थे । और माता उसमें से दो हिस्सें करती थी । एक वह भीमसेन को दे देती और दूसरे भाग में से चार भाई अपनी भूख मिटाते थे । माता जो कुछ बचा कुचा होता था, उसमें चला लेती । भीमसेन को आधा-आधा खाना मिलता था, फिर भी वह भूखा रहता था । इसका मतलब है कि वह हमेशा भूखा था, अब तक वह कितना खा चुका । उसकी शक्ति आश्चर्यजनक थी । इसी तरह से उसकी भूख और ताकत भी बहुत गजब की थी ।

          उसका एक नाम वृकोदर था । मतलब वृक ( wolf )  के जैसा उदर माने पेट – । वृक (भेडिया) नामक  जो प्राणी रहता है उसका पेट छोटा होता है लेकिन वह कभी भरता नहीं। उसे खाना खाते ही रहना पड़ता रहता है । उसी तरह  भीमसेन का पेट था ।

         अब भिक्षा में तो कितनी चीज मिल सकती है? कुछ ज्यादा सामान नहीं आता था । उसमें भाइयों और माता को भी हिस्सा था । इसीलिए भूख के कारण भीमसेन धीरे-धीरे पतला होता गया और उसका शरीर भी कम खाने की वजह से पीला होता । यह देखकर माता और युधिष्ठिर को चिंता होती थी ।   

Bakasur    भीमसेन का साहस - एकचक्रा शहर में: बकासुर का वध 1

2.कौन रो रहा था – क्यों

      दूसरी तरफ से युधिष्ठिर ने एक नई योजना बनाई। क्योंकि भीमसेन  बहुत कम समय में बहुत काम करके देता था । और भीम के लिए उसने एक बड़ी पतेली बनाई । यह लेकर भीमसेन भिक्षा लेने को जाता था, लोग उसकी इतनी बड़ी काया और इतने बड़े मिट्टी के भिक्षा पात्र को देखकर हँसते थे ।

     एक दिन भीमसेन भिक्षा के लिए नहीं जा सका । माता की सेवा में ही पीछे रह गया । मां- बेटे जब बैठे थे, तभी उसके कान पर एक बहुत ही भयंकर रुदन की आवाज आई । कुछ बुरी बात बनी होगी, यह आवाज सुनकर और सोचकर माता कुंती रोने का कारण जानने के लिए ब्राह्मण के पास पहुंची ।   

3. Bakasur का वध ब्राह्मणकी दुविधा

अंदर जाकर देखा तो ब्राह्मण और उसकी पत्नी आंसू बहा रहे थे और फूट फूट कर रो रहे थे। ब्राह्मण अपनी पत्नी से रोते-रोते कह रहा था ।

      “अगले अग्नि मैंने तुमसे कई बार कहा था कि हम गाँव छोड़कर चले जाए, लेकिन मेरी बात तुमने मानी नहीं । तूने तो ऐसा बताया कि मेरा जन्म तो यहीं पर हुआ है । यहीं पर पली- बड़ी हुई हूं ,तो मैं इस जगह छोड़कर नहीं जा सकती ।  तेरे माता-पिता मर गए फिर भी तू जिद करती रही – यहां से नहीं निकलना है । यह तो तेरे बाप दादा का गाँव है ।”

        ब्राह्मण पत्नी तो रोती रहती है । कुछ बोलती नहीं है । ब्राह्मण कहता है,“ यह सही है कि तू मेरी धर्म संगिनी है। मेरे संतानों की माता है। मेरी पत्नी है – मेरे लिए माता और मित्र जैसी है । कहुँ तो तू मेरा सर्वस्व है। तुझे अकेली छोड़कर मैं मृत्यु के मुंह में तुम्हें क्यों धकेलुं? तुझे यम के हाथ में सौंप कर मैं जिंदा रह कर क्या करूंगा ?”

तभी उसकी पुत्री तरफ उसकी नजर गई। पुत्री के बारे में विचार करते-करते वह बड़ा सहम गया। सोच रहा था पुत्री को भेज दो अरे यह तो भगवान ने दिया हुआ एक आशीर्वाद, एक सौगात और धरोहर है । उनकी तो शादी करनी है तो उसे बलि बनाने की  हम कैसे  सोच सकते हैं? मेरे परमात्मा ने मुझे यह बेटी दी है। जिससे मेरा वंश चलेगा । मुझे तो इसे कभी नहीं मारना चाहिए । मैं ऐसा पापी कभी नहीं बन सकता । उसको मैं खो नहीं सकता।”

  4. ब्राह्मणकी विडंबना

फिर वह पत्नी से कहने लगा, “तूने मेरी बात नहीं मानी और यहीं पर जमी रही। अब बेटे को बलि में Bakasur के मुंह में दे दूं, तो फिर पितरों को श्रद्धांजलि कौन देगा? उसको मैं  बलि कैसे दे सकता हूं ? मैं पिता होकर, उसको मृत्यु के मुख में कभी नहीं भेज सकता ।

यह सब बातें सोचकर, मुझे लगता है कि मुझे ही बलि चढ जाना चाहिए । तो फिर अगर मैं जाता हूं ,तो यह अनाथ बालकों का क्या होगा ? हे भगवान मैं क्या करूं ? ऐसा करते हैं ,हम लोग सब एक साथ में चले जाते हैं और राक्षस का बलि बन जाते हैं ।”इतना कहते-कहते बड़े जोरों से रोने लगा।

उसी समय ब्राह्मण पत्नी ने बहुत ही उदास स्वर में कहां, “ मेरे नाथ, पति की पत्नी के पास से जो अपेक्षा रहती है, वह मैंने पूरी की है । मैंने तुम्हें बच्चे दिए हैं – एक पुत्र और एक पुत्री । विवाह का मुख्य उद्देश्य था वह सिद्ध हुआ है ।

मेरा कर्तव्य पूरा हो गया अब मेरा क्या काम है? मैं ही राक्षस Bakasur के पास बलि बन के चलती हूं ।आप यह बच्चों को पाल-पोस कर बड़ा करना । मेरे अकेले के जाने से उनको कुछ ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा । और अगर आप नहीं होते हो, तो  लोग मेरी तरफ और अपनी बेटी की तरफ बुरी नजर से देखेंगे । बहुत तकलीफ झेलनी पड़ेगी ।

जब बाज और चील कौवे मांस के टुकड़े देखते हैं, तो उस पर चपट मारके उठा ले कर जाते हैं । इसी तरह दुनिया में जो अनाथ स्त्री होती है, उसके उपर दरिंदे हमला करके उसे ले जाते हैं ।

मानो के एक गिला कपड़ा है और कुत्ते उसको खींचातानी करते हैं । उसी तरह एक विधवा स्त्री की हालत होती है फिर वह बेचारी ठोकर खाते खाते यहां वहां घूमती रहती है । यह अपने बालक है ,वह भी तुम्हारे बिना तड़प तड़प के मर जाएंगे तो इसीलिए मेरे जीवन रक्षक, आप मुझे जाने दो । मैं कहती हूं- मैं सुहागन होते हुए मरूंगी तो मुझे स्वर्ग मिलेगा ।

स्वर्ग में इस तरह से जाने का भाग्य सब को नहीं मिलता । तो मुझे आप आता दो आज दिन तक मैंने तुम्हारी सेवा की है । धर्म परायणता और तीव्र से मैंने अपना जीवन चलाया है । यही मेरा स्वर्ग है तो, स्वर्ग में ही थी । लेकिन मरूंगी, तो भी स्वर्ग में जाऊँगी । आपको अगर दूसरी शादी करनी पड़े तो बड़ी खुशी से करना । मुझे जाने दो उस राक्षस ( Bakasur ) के पास ।”

बकासुर का वध

इसके बादकी कहानी यहाँ पढें : भीमसेनका पराक्रम बकासुरका वध 2

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