Search

1. Bhim की सोच

Bhim सेन की शक्ति – पांडवने आगे चलना जारी रखा । चलते चलते जब शाम ढली, सूरज डुब गया और रात हुई । चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था । जंगल में शेर आदी जंगली जानवरों की डरावनी आवाजें आ रही थी । ऊपर से, सब लोगों को अब प्यास लगी थी और नींद भी आ रही थी । उम्र के कारण माता कुंती से तो बैठा भी नहीं जा रहा था । लेकिन भीमसेन की शक्ति उनका सहारा थी।

बड़े दीन भाव से वह बोली, “बेटा, मैं तो प्यास के मारे मर रही हूं। अब मुझ से चला नहीं जाएगा। धृतराष्ट्र के बेटों को मेरा जो करना है, वह करें। चाहे तो मुझे यहां से उठा ले, लेकिन मैं तो यहीं पर पड़ी रहूंगी।” इतना कहते ही कुंती माता जमीन पर गिर गई और बेहोश हो गई ।

   Bhim की माता और अपने भाइयों की स्थिती देख कर बड़ा व्यथित हो गया । वह एकदम जंगल में निकल पड़ा । जंगल के पास उनको एक जलाशय नजर आया । वह झटपट गया और  कमल पत्र में पानी भर के ले कर आया । माता और भाइयों की प्यास बुझने पर, सब लोग गहरी नींद में सो गए । सिर्फ भीमसेन पहरा करने बैठ   गया ।

      उसके निर्दोष मन में विचार आने लगे।  इस जंगल में कितने सारे पेड़ पौधे हैं । कैसे एक दूसरों की रक्षा करते हैं। कितने आनंद से जी रहे है। जंगली जानवर चाहे कितने भी खूंखार हो, एक दूसरे से कितने मिलजुल कर रहते है । फिर यह दूसरी ओर दुर्योधन है,जो मनुष्य होने के बावजूद, हमारे साथ ऐसा भेदभाव क्यों करते है?

   उतने में कुछ देर के बाद कुंती माता और युधिष्ठिर और बाकी के पांडव उठ गए । भीमसेन की अनेक विपदा और बाधाओं का सामना करके, जंगल में उन सभी लोगों को आगे लेकर गए । कभी वह माता को उठा के बड़ी तेजी से चल रहा था और कभी थकान से बैठ जाता । कभी एक दूसरे के साथ हार जीतमें उतरता था । ऐसा कर करके उन्होंने आगे का रास्ता काटा।

Bhim

2. Bhim की शक्ति, पराक्रम तथा वीरता :पांडव महर्षि वेदव्यास से मिलते हैं

    वह अभी चल रहे थे ,उतने में एकदिन महर्षि व्यास उनको रास्ते में मिले। सभी ने उस महान पुरुष को दंडवत प्रणाम किया ।  महर्षि  ने उन्हें उपदेश तथा आशीर्वाद दिया और धीरज से दुख का सामना करने के लिए कहा । कुंती माता तो एकदम आँसू बहा के रोने लगी और अपना दुख कहने लगी ।

   तभी महर्षि व्यास ने कहा,“देखो, आप हमेशा धर्म का ही काम करें। ऐसा कोई मनुष्य दिखने में या मिलने में नहीं जिसने पाप न किया हो । दुनिया में ऐसे  भी लोग  नहीं  पाए जाते  है, जो हमेशा पाप करते हैं । संसार में हर एक मनुष्य कुछ पाप कर्म करते हैं और कुछ अच्छा कर्म भी करते हैं ।

        अपने आप पर या किसी और से जब विपत्ति आए, तो ऐसा मानना चाहिए कि अपने कर्मों का फल है । सभी लोगों ने अपने अपने कर्मों का फल भुगतना ही है । इसीलिए आपको दुखी नहीं होना चाहिए । धीरज रखिए, हिम्मत रखिए और थोड़ा दुख-दर्द सहने की शक्ति भगवान से मांगे” । फिर पांडवों को सलाह दी, “कि अब ऐसा करना अब ब्राह्मण और ब्रह्मचारी का वेश लेना ।”

  3. पांडवों ने ब्रह्मचारी ब्राह्मण का वेश लिया

पांडवों ने ब्रह्मचारी ब्राह्मण का वेश लिया और एक ब्राह्मण के वहां एकचक्रा नगरी में उन्होंने निवास किया ।

पांडव कुंती माता के साथ एकचक्रा नगरी में ब्राह्मण के घर रहने लगे । पांडव कुछ भिक्षा मांगने जाते थे और कुंती जी उनका घर संभालती थी । उनके पुत्र जब बाहर रहते थे तब माता का मन उद्वेग में ही भटकता रहता था । उनका दिमाग एकदम चिंता करने लगता वह जब वापस आते थे, उद्वेग उनके मन से  चला  जाता था ।

             पांचों भाई जो भी ले कर आते थे, वह सब माता को दे देते थे । और माता उसमें से दो हिस्सें करती थी । एक वह भीमसेन को दे देती और दूसरे भाग में से चार भाई अपनी भूख मिटाते थे । माता जो कुछ बचा कुचा होता था, उसमें चला लेती । भीमसेन की शक्ति और भुख ज्यादा थी इसलिए भीमसेन को आधा-आधा खाना मिलता था, फिर भी वह भूखा रहता था । इसका मतलब है कि वह हमेशा भूखा था, अब तक वह कितना खा चुका । उसकी शक्ति आश्चर्यजनक थी । इसी तरह से उसकी भूख और ताकत भी बहुत गजब की थी ।

हानी का दुसरा भाँग यहां पढे : भीमसेनका पराक्रम बकासुरका वध 2

Leave a Reply

Translate »