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देवव्रत Bhishma कैसे बने – एक अनोखी कथा।

देवव्रतका जऩ्म एक अनोखी घटना थी। देवव्रत Bhishma कैसे बने – यह भी बडी दिलचस्प कथा है। यह वसु वशिष्ठ के आश्रम से वापस आए और सोचने लगे मुनिने  हम पर इतनी कृपा की है, यह तो बहुत हो गया ।चलो हम गंगा नदी के पास जाते हैं और वह लोग सब मेरे पास आए,  दुख भरे आँसु बहाने लगे। उन्होंने कहा, “हमको पृथ्वीलोक में जाना पड़ेगा, मां आप ही हमारी जननी बनकर हम को जन्म देना।”      

  जन्म लेने के तुरंत बाद हम को जल में डाल देना क्योंकि मुनी की  वाणी  साफ कहती  है कि जन्म के बाद हम तुरंत मर जाएंगे ।तो इससे अच्छी मौत क्या हो सकती है कि  गंगा में  जन्मे और गंगा में ही डूब कर मरे।”

           गंगा आगे कहानी सुनाती है।“ हे राजेंद्र, वही गंगा मैं आपकी प्रियतमा बनकर आई। सातों को मैंने जन्म देते ही जल में डाल दिया। यह आठवां जिंदा रहेगा, मैं उसको अपने पास रख कर बड़ा करूंगी। अब यहां से चले जाओ। यह बालक बड़ा ही भाग्यशाली है क्योंकि उनको तुम्हारे जैसे यशस्वी पिता मिले है। ।राजा आप भी भाग्यशाली हो क्योंकि आठ वर्षों में तुम्हारे यहां पुत्र के रूप में जन्म लिया। अब आप वापस जाओ। फिर आप यह उत्तर को लेने आना और महाराज एक बात तो कहना रह गई, इसका नाम देवव्रत

 रहेगा। यह गंगापुत्र उसके कुछ समय के बाद भीष्म के नाम से प्रसिद्ध होगा।”

        गंगा चली गई और शांतनु खाली हाथ वापस आ गया। अब तो सारे भोग और उसकी सारी लालसा उसे दूर भाग गई । अपने राज दरबार के काम में वह मशगुल हो गया।

Bhishma का वापिस आना, देवव्रत भीष्म कैसे बने , भीष्मका राजगद्दी पर बैठना

       एक दिन वह शिकार करने को गया । फिर से गंगा के उसी तट पर यह घूमने लगा। अचानक उसको दृश्य देखने को मिला देवपुत्र जैसा एक सुंदर जवान उसके सामने खड़ा है ।उसका शरीर बड़ा प्रचंड है और अच्छी तरह घटा हुआ है ।उसके मुंह से और कपाल से तेज का प्रकाश आ रहा है। राजा ने बड़े ध्यान से देखा तो वह युवक गंगा की धारा पर बाण चला रहा था। तो यह देख कर शांतनु को बड़ा आश्चर्य हुआ और उसके सामने देखने लगा।

सोचने लगा यह कौन हो सकता है? तो उससे भी बड़ा आश्चर्य   उसके सामने आया। गंगा उसकी उसकी पत्नी उसके सामने आकर खड़ी हो गई। उसने युवक को अपने पास बुलाया। राजा से कहा, “ हे राजन यही तुम्हारा आठवां पुत्र देवव्रत है। महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें वेद और वेदांत का संपूर्ण ज्ञान दिया है। शास्त्र के ज्ञान में शुक्राचार्य से भी आगे और रण कौशल में परशुराम का भी मुकाबला कर सकता है। इसके जैसा कुशल रणयोद्धा कोई नहीं है और यह बड़ा चतुर राजनीतिज्ञ भी है ।लो महाराज अब अपने पुत्र को ले जाओ ।”                            

               शांतनु ने अपने पुत्र के मस्तक पर हाथ फिराया और उसे आशीर्वाद दिया। जैसे शांतनु ने ऊपर देखा उतने में गंगा तो गायब हो गई।  पुत्र प्राप्ति का राजा को अपूर्व आनंद आया और प्रसन्नता से हस्तिनापुर अपने पुत्र को लेकर आये ।और अब राजकुमार देवव्रत युवराज पद पर बैठकर राज्य चला रहा था।

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यह कहानी है कि कैसे प्रभास एक डेमिगॉड को एक नश्वर मानव के रूप में जन्म लेना पड़ा। वह काम करने लगा और उसका गंगा के यहाँ जन्म हुआ। उसकी भिषण प्र्तिज्ञाके कारण वह Bhishma कहलाये। महाभारतकी मे उनका पात्र सबसे महत्वपूर्ण है – श्रीकृष्ण के बाद।

Bhishma
देवव्रत भीष्म कैसे बने

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