देवव्रत की जन्म कथा भाग 1 राजा शांतनु गंगा से मिले

देवव्रत की जन्म कथा भाग 1 राजा शांतनु गंगा से मिले

देवव्रत (prabhas) की जन्म कथा : गंगाकी अजीब कथा

देवव्रत (prabhas) की जन्म कथा हस्तिनापुर के राजा शांतनु से आरंभ होती है । गंगा नदी के तट पर टहल रहे थे। अचानक उन्होंने एक सुंदरी को देखा। उसका सौंदर्य और यौवन देखकर वह मोहित हो गया।

    देखकर वह उस सुंदरी पर मोहित हो गए। बहुत ही विकल होकर वह उस सुंदरी को जाकर कहते हैं , “आप जो कुछ भी हो लेकिन मेरा प्रेम आप स्वीकार करो। मुझसे शादी करो। मेरा राज्य,मेरा सारा धन और मेरे प्राण भी तुम्हारे हैं। ”

       वह सुंदरी धीरे-धीरे हंसकर उनसे कहती है, “राजन मैं तुम्हारी पत्नी बनने को तैयार हूं। लेकिन तुमको मेरी कुछ शर्तें माननी पड़ेगी।” 

      “मंजूर है सारी शर्तें।” शांतनु एकदम मोहित हो गया था। इसलिए उसको लगा कि अगर मैं शर्तें पूछुँगा  तो यह मुझे मना कर देगी।” तो उसने तुरंत बोल दिया,“जरूर जरूर।”

    “तो सुनो मुझे किसी ने भी पूछना नहीं है कि मैं कौन हूं, कौन से कुल की हूं। मैं जो कुछ भी करूं ,अच्छा करूं या बुरा करूं ,मुझे कोई रोक नहीं सकता। किसी ने मेरी बात से नाराज नहीं होना है और किसी ने मुझे तिरस्कार भी नहीं करना है। मुझे डांटना भी नहीं है।”      

    “इसमें से एक भी शर्त अगर टूटी, तो मैं आप को छोड़ कर चली जाऊंगी।” शांतनु  ने कहा, “कुबूल है सारी बातें, तुम्हारी हर एक शर्त मुझे कुबूल है। मैं सारी शर्तें मान लूंगा। ”      

     इस तरह, गंगा शांतनु के महल की शोभा बन गई।उनके राज्य की महारानी। उसके अच्छे स्वभाव से, उसकी नम्रता से और उसके प्रेम से शांतनु ही मुग्ध हो गए। धीरे-धीरे समय बहने लगा। शांतनु और गंगा को समय का अहसास भी नहीं हुआ। देवव्रत (prabhas) की जन्म कथा मे और भी मोड आयेंगें।

      गंगा को सात तेजस्वी पुत्र हुए, लेकिन एक को भी उसने जिंदा नहीं छोड़ा ।जैसे ही उसका जन्म होता था, तो वह उसके अपने पुत्र को नदी में बहा देती थी। फिर हंसते मुंह से राजा के पास आती थी। यह उनका काम देखकर राजा बड़े अस्वस्थ हो गए। और उनको बड़ा क्षोभ हुआ और उसको आश्चर्य की सीमा नहीं रही। उनको लगता था कि यह औरत अपने कोक से जन्मे छोटे-छोटे कोमल बच्चो पर ऐसा क्रूर कर्म क्यों कर रही है ?यह मां होकर भी दया क्यो नहीं करती?

            लेकिन उनके मन के विचार वह नहीं बोलते थे। क्योंकि उन्होंने गंगा को वचन दिया था। अब आठवां पुत्र आया गंगा ने उठाया और जल में बहाने की शुरुआत की। 

राजा उसके पीछे गया और वह बोल पड़ा, “अरे ठहर जाओ इतना बड़ा पाप क्यों कर रहे हो ? एक जने का होकर एक मा होके इतने मासुम बच्चे को तुम मार रही हो ?तुम को इस तरह का क्रूर बर्ताव शोभा नहीं देता।” हो गया, गंगा की शर्त टूट गई और उसने गुस्से से कहा, “महाराज आपने मुझे जो वचन दिया था वह आज आप ने तोड़ दिया। तो तब तुमको तुम्हारे पुत्र की पड़ी है। मेरे वचन की नहीं पड़ी है। ठीक है, तो अब मैं जाती हूं। मैंने आपसे पहले ही कहा था कि अगर आपने कोई एक शर्त भी तोड़ी तो मैं यहां से चली जाऊंगी ।” शांतनु आश्चर्यचकित हो गया।

          लेकिन मेरी बात सुनोगे ?” राजन ने कहा “कहो क्या कहते हो?” “देखिए महाराज मैं कोई सामान्य सुंदरी नहीं। यह जो नदी तुम्हारे सामने बह रही है और जिसके पानी से पूरा त्रिभुवन पाप मुक्त हो रहा है, वही मैं गंगा हूं। ऋषि मुनि मेरा यश गाते फिरते हैं ,और सारे भक्त मेरी एक अंजलि के लिए जीवन भर तपस्या करते है ,मैं ही गंगा हूं।” देवव्रत (prabhas) की जन्म कथामे अब उदासी आ गयी।

       राजेंद्र शांतनु चकित रह गया। गंगा भागीरथी सागर के कुल को और सागर के बच्चे को बचाने वाली। शांतनु और भी चकित हो गया और वही गंगा ने अपने सातों पुत्रों को जल में बहा दिया। आठवें को किसी तरह बचा पाई । महाभारत की अन्य कहानियाँ पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें ।

गंगा कहती है, “हां सातों को मैंने जल में बहा दिया! यह आठवां जीवीत है और इसके साथ-साथ ,हमारे  दोनों के साथ जीने का समय खत्म हो गया है। हे राजेश्वर, तुम को मुझ पर घ्रुणा होती होगी, मुझ पर गुस्सा आता होगा। लेकिन सारी बातें मैं आपको एकदम संक्षेप में बताती हूं।” 

देवव्रतकी जन्म कथा क्यों, कहाँ और कैसे शुरु हुई ?  गंगा कहती है, “हां सातों को मैंने जल में बहा दिया! यह आठवां जीवीत है और इसके साथ-साथ ,हमारे  दोनों के साथ जीने का समय खत्म हो गया है। हे राजेश्वर, तुम को मुझ पर घ्रुणा होती होगी, मुझ पर गुस्सा आता होगा। लेकिन सारी बातें मैं आपको एकदम संक्षेप में बताती हूं।” आगे क्या हुआ , यहाँ पढें

(prabhas)

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