आदित्य ह्रिदय स्तोत्र कि कहानी – 3 बाते

आदित्य ह्रिदय स्तोत्र

आदित्य ह्रिदय किस परिस्थिति मे गाया गाया? रामायण में राम और रावण के बीच फाइनल के दौरान  राम ने रावण के खिलाफ सभी प्रकार के हथियारों और मिसाइलों का इस्तेमाल किया, लेकिन कोई भी काम नहीं आया। दशानन अजेय लग रहा था। राम, याद रखें, एक सामान्य इंसान हैं (और सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु नहीं), एक आम आदमी की तरह मानसिक और शारीरिक रूप से थकान से परेशान हैं। वह युद्ध के लिए तैयार रावण को देखता है और चिंतित हो जाते है।

रामकि मन स्थिति और आदित्य हृदय स्तोत्र

इसी तनावपूर्ण स्थिति में यह दिव्य आदित्य हृदय स्तोत्र गाया जाता है।

इस समय, जैसे ही देवता आकाश से युद्ध के दृश्य को देखते हैं, ऋषि अगस्त्य राम के पास आते हैं और राम की शक्ति को नवीनीकृत करने और युद्ध के अंतिम परिणाम पर तेजी से पहुंचने के एकमात्र उद्देश्य से, सूर्य देव की यह प्रार्थना सिखाते हैं , और जल्द ही चला जाता है। राम को अगस्त्य से उपदेश मिलता है, और उसका पाठ करने से वे और अधिक मजबूत हो जाते हैं। वह अपना धनुष उठाते है और रावण के साथ अंतिम युद्ध के लिए तैयार हो जाते है।

इस प्रकार, रामायण के लेखक वाल्मिकी, अपनी अनूठी अभिव्यक्ति के साथ, कहानी की अंतिम लड़ाई मे , राम को आगे बढ़ने के लिए, सूर्य भगवान से इस प्रार्थना की घटना और अध्याय को समाप्त करते हैं।

य़ह लेखमे आदित्य हृदय स्तोत्र के बारे मे बात करेङ्गे । स्तोत्र की कहानि सुनेंगे और समझेंगे:

आदित्य हृदय पर रामायण से एक प्रसंग सुने:

श्रिराम रावण के साथ लड़ने को तैयार हो रहे है। लेकिन वे एक सामान्य व्यक्ति की तरह थोडासा दरे हुए है, उसि वक़्त वहआ पे रुशि अगस्त्य आते है  – और उङ्कि स्थिति देख्कर उन्हे सलाह देते है की वे अदित्य ह्रिदय स्त्तोत्र जपे। क्या है यह स्तोत्र ? और उसे क्यों जपना चाहिये?

 निचे दिये गया है . 

आदित्य हृदय स्तोत्रम (Aditya Hriday Stotra)

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् ॥॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम् । येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥॥

सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥॥

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान् पाति गभस्तिभि: ॥॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥॥

पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: । वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥॥

आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान् । सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥॥

 हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान् । तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥॥

हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि: । अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग: । घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥॥

आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:। कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन: । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥॥

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम: । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम: । नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: । नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥॥

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे । नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु: । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित: । एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन् पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम् । एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा ॥ धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान् ॥॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् । त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम् । सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: । निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥॥

।।संपूर्ण ।।

इस स्तोत्र का संपूर्ण अर्थ जानने के लिये यहा क्लिक करे– https://resanskrit.com/blogs/blog-post/aditya-hrudayam-stotram-explained

और यहाँ क्लिक करे https://www.youtube.com/watch?v=qLXRj4HId

दुसरे हिस्से मे अर्थ घटन करेगे।

Leave a Reply